दोस्तों, बहुत दिनों से मैं ब्लॉग पर कुछ भी नही पोस्ट कर सका हू। इसलिए इस बार आपलोगों को हँसाने के लिए चोरी के चुटकुले ही पोस्ट कर रहा हू। आशा है कि सुने-अनसुने चुटकुले की गुदगुदी में आप लोग मेरी ये गुस्ताखी माफ़ कर देंगे।
लीजिये पेश है रंगीन, चटपटे और चुटीले चुटकुले______
१) दो सहेलियाँ बातें कर रही थीं।
एक बोली - मेरे पति के सिर पर इन दिनों बड़ी-बड़ी मूँछें रखने का फैशन सवार हुआ है। मुझे तो हँसी आती है।
दूसरी बोली - हाँ सखी, गुदगुदी तो मुझे भी होती है।
२) पति जलता-भुनता आया और पत्नी से बोला - 'हमें यह फ्लैट बदलना पड़ेगा। क्योंकि चौक में खड़ा मकान मालिक का लड़का, जोर-जोर से कह रहा है कि एक को छोड़कर इमारत की हर औरत के साथ वह जन्नत की सैर कर चुका है। पत्नी ने सोचकर कहा - 'वह जरूर बीस नंबर के फ्लैट वाली निगोडी शकुंतला होगी।
३) ज्वेलरी शॉप में संता सिंह की जोरदार पिटाई हो गई। आखिर क्यों? संता सिंह ने सेल्स गर्ल से कहा था-आपकी एक एक आईटम गजब की है। सोने का क्या रेट लेंगी?
४) महिला : "डॉक्टर साहब मेरे पति को लगता हैं कि वे डिश एंटीना हैं" डॉक्टर : " कोई बात नहीं, मैं उनका ईलाज कर देता हूँ"महिला : "नहीं नहीं आप केवल उन्हें ठीक से सेट कर दें, ताकि मैं स्टार प्लस देख सकूं"
५) पत्नी: 'डॉक्टर साहब मेरे पति को रात में बड़बड़ाने की आदत है, कोई उपाय बताएं"।डॉक्टर:"आप उन्हें दिन में बोलने का मौका दिया करें".
६) एक बार एक चूहा दौडता हुआ नदी के किनारे गया और हाथी को नहाता देख, चिल्लाया- औ हाथी रे! बाहर आ! हाथी हडबड़ाकर बाहर आया, तो चूहा बोला चल नहा ले, नहा ले! मेरी एक अंडरवियर खो गई है। मैंने सोचा कहीं तूने तो नहीं पहनी।
७) जच्चाखाने के लाइन से बिछे पलंगो पर 'कुछ बन चुकी और 'कुछ बनने वाली माताएँ बतिया रही थीं। लीला बोली - - क्या संयोग है! मैंने 'दो जासूस फिल्म देखी थी और मुझे जुडवाँ बालक प्राप्त हो गए। नीना बोली - 'ओहो.. तभी मुझे तीन पुत्र हुए क्योंकि मैंने ठीक पहले 'अमर-अकबर एंथोनी देखी थी। अचानक प्रेग्नेन्ट प्रेमा चीख पड़ी - हाय! गजब हो जाएगा। मैंने कल ही 'अलीबाबा और चालीस चोर देखी है।
८) संता आधी रात को अपनी मोटी बीवी से बोला कि सिसक सिसक कर मरना ठीक है या एक दम।
बीवी बोली- एक दम।
संता- तो अपनी दूसरी टाँग भी मुझ पर रख ही दो
9) राम खिलावन- पत्नी अगर पति को नौकर समझे तो पति को क्या करना चाहिए?
राम लला- कुछ नहीं, दो-चार घर और पकड़ लेने चाहिए।
१०) डॉक्टर- क्या आप डिलीवरी के टाइम बच्चे के पिता को अपने पास देखना चाहेंगी?
औरत- नहीं उन्हें मेरे पति पसंद नहीं करते।
Tuesday, November 25, 2008
Wednesday, September 24, 2008
कुछ नयनाभिराम दृश्य: आप के लिए
रोज़ की आपा- धापी की जिंदगी में रोजी रोटी को जुटाने के चक्कर में आज इंसान के पास प्रकृति की गोद में बैठ के घंटे दो घंटे चैन से सुकून से बिताने का समय नही मिलता है। पर इश्वर ने हमें आँखे दी है जिसे कुछ राहत पहुचाने वाले दृश्य तो चाहिए ही। यही सोचकर इस बार कुछ प्रकृति के कुछ चुनिन्दा नजारे आपके लिए ऊपर पेश है। कृपया आनंद उठाये.
Wednesday, September 3, 2008
बीजींग ओलम्पिक में भारतीय खिलाडि़यों की सफलता: कितनी प्रासंगिक
8 अगस्त 2008 से बीजींग में प्रारंभ ओलम्पिक खेलों का भव्य उद्घाटन देख चुकने के बाद और किसी खास रोमांच की कल्पना किसी भारतीय ने शायद ही की होगी। वैसे भी जब देश के कुछ हिस्सों में आतंकी घटनाऍं और बाढ़ की स्थिति चल रही हों तथा देशवासियों के राष्ट्रीय धर्म क्रिकेट में भी शिकस्त मिल रही हो, ऐसे में श्री सुरेश कलमाडी (अध्यक्ष, आई.ओ.सी.) की भारतीय ओलम्पिक खिलाडि़यों से किसी चमत्कार की आशा न रखने की नेक सलाह बिल्कुल जायज ही थी। परन्तु 11 अगस्त को ही अभिनव बिन्द्रा ने 10 मी. एयर राइफल निशानेबाजी में अप्रत्याशित रूप से स्वर्ण पदक प्राप्त कर समूचे देश को चौंका दिया। ओलम्पिक के 108 वर्ष के भारत के इतिहास में पहली बार किसी व्यक्तिगत स्पर्धा में यह स्वर्ण पदक देश को प्राप्त हुआ है। 20 अगस्त को सुशील कुमार ने 66 किलोग्राम वर्ग कुश्ती प्रतियोगिता में कजाखिस्तान के लियोनिद स्पिरदोनोव को हरा कर देश के लिए इस ओलम्पिक का पहला कांस्य पदक जीता। इसके दो दिन बाद ही विजेन्द्र कुमार ने 75 किलोग्राम की पुरूषों की मध्यम मुक्केबाजी में एक कांस्य पदक जीतकर तिरंगे को एक बार फिर शान से फहराने का मौका दिया। कुछ अन्य खिलाड़ी जैसे अखिल और जितेंद्र(मुक्केबाजी), योगेश्वर दत्त(कुश्ती), सैना नेहवाल(बैडमिंटन) और पेस-भूपति(टेनिस) पदक जीतने से जरा-सा से चूक गए।
बीजींग ओलम्पिक में भारतीय खिलाडि़यों ने अब तक का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। ये खिलाड़ी एक नए भारत, जिसमें शहरी-देहाती, धनी-गरीब सभी की महत्वाकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व है, की तस्वीर सारी दुनिया को दिखला रहे हैं। लेकिन अन्य देशों के मुकाबले हमारे देश का प्रदर्शन काफी फीका रहा है। भारत से काफी छोटे-छोटे देशों जैसे जमैका, पोलैंड, लातविया आदि ने काफी ओलम्पिक मेडल हासिल किए हैं, पड़ोसी देश चीन पदक तालिका में द्वितीय स्थान(स्वर्ण पदकों में प्रथम स्थान) पर था जबकि हम किसी प्रकार 51वें स्थान पर ही पहुँच सके। हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी की टीम के साथ फुटबॉल और बास्केट बॉल की टीमें तो इस ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर सकी थी। बीजींग गई 56 सदस्यीय भारतीय टीम ने देश को केवल 3 पदक से संतोष करने को मजबूर कर दिया। अब तो यह राष्ट्रीय बहस का मुद्या बना हुआ है कि एक अरब से अधिक आबादी का देश क्या इतने ही पदक जीतने की क्षमता रखता है? आलोचक तो यहॉं तक कहने लगे हैं कि “ओलम्पिक खेलों में भारत की भागीदारी करदाताओं के पैसों की बरबादी से बढ़कर कुछ भी नहीं है।”
आजकल भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता के आगे बाकी खेल दब से गए हैं। परंतु ओलंपिक खेलों में एक समय भारतीय हॉकी का एकछत्र राज रहा था। इस खेल ने केवल ओलंपिक खेलों में ही 11 मेडल (जिनमें 8 स्वर्ण) देश को दिलवाए हैं। साथ ही समय-समय पर नॉर्मन गिल्बर्ट प्रीथार्ड (भारत के लिए प्रथम मेडल जीतने वाले एंग्लो-इंडियन), के.डी. जाधव, लिएंडर पेस, कर्णम मल्लेश्वरी तथा राज्यवर्धन राठौर ने देश के लिए पदक हासिल किए हैं। हाल के वर्षों में विभिन्न प्रतियोगिताओं में नारायण कार्तिकेयन ने प्रथम ए-वन जीपी(फॉर्मूला कार रेसिंग) जीता, डोला बनर्जी ने विश्व कप तीरंदाजी अपने नाम की, तो विश्वनाथन आनंद ने विश्व शतरंज चैम्पियनशिप जीत कर दिखाया। टीम खेलों की बात करें तो फुटबॉल में भारतीय खिलाडि़यों ने नेहरू कप और ओ.एन.जी.सी. कप हासिल कर दिखाया तो हॉकी में एशिया कप दक्षिण कोरिया से जीतने में हम सफल रहे। इस प्रकार फिल्म चक दे इंडिया का प्रेरक प्रभाव इन खेलों में मिली जीत के रूप में भी झलका था।
बीजींग ओलम्पिक में खिलाडि़यों के उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन ने देश को भविष्य में और अच्छे प्रदर्शनों की आशाऍं जगाई हैं। वैसे भी भारत में खासकर गॉंवों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। हमारे पारंपरिक खेलों जैसे कुश्ती, तीरंदाजी आदि में इनकी प्रतिभा को पहचानकर और रणनीतिक तरीके से प्रशिक्षित कर विश्व-स्तरीय प्रतियोगिताओं के लिए इन्हें तैयार किया जा सकता है। पड़ोसी देश चीन में अगर प्रत्येक 100 में 30 बच्चे एथलीट होते हैं तो इस वजह से कि वहॉं के हर प्रान्त में खेल प्रशिक्षण कार्यक्रम बारहों मास चलते रहते हैं। देश में बहुविधीय खेलों के विकास के लिए हर राज्य में इन सभी खेलों के लिए एक लीग होना चाहिए जिसके राष्ट्रीय नेटवर्क का भी गठन करने की जरूरत है। सभी खेलों के खिलाडि़यों के लिए उत्कृष्ट कोच, आवश्यकतानुसार विदेशी कोच भी, उनके जूनियर स्तर से ही लगा देना चाहिए। खेल प्रशासन संभालने के लिए संबंधित खेलों के अनुभवी लोगों को ही नियुक्त करना निहायत जरूरी है। पोषण का खिलाड़ी के प्रदर्शन से सीधा संबंध होता है। अत: राष्ट्रीय कैंपों में उत्कृष्ट पोषक पदार्थ की आपूर्ति की जानी बहुत जरूरी है। चोटिल खिलाडि़यों को अनदेखा करने या निकालने के बजाय उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि भविष्य में उनसे अच्छे प्रदर्शन की आशा बनी रहे। कॉरपोरेट समूहों को चाहिए कि वे सिर्फ क्रिकेटरों के पीछे भागने के बजाय अन्य खेल के खिलाडि़यों को भी स्पांसर किया करें। वे भी इस प्रोत्साहन से अच्छे प्रदर्शन कर भविष्य में उनके उत्पादों के लिए अच्छे ब्रांड एम्बेस्डर सिद्ध हो सकते हैं। आई.पी.एल. क्रिकेट की तर्ज पर इन खेलों में भी अभिनव प्रयोग कर व्यावसायिकता के प्रवेश के साथ बेहतर प्रदर्शन को प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ ही आम लोगों की रूचि भी इन खेलों में जगाई जा सकती है। खेलों में राजनीति दीमक की तरह होती है जिससे खेलों को दूर रखना परमावश्यक है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सरकार, खेल प्रशासकों, भारतीय ओलम्पिक कमिटी प्रमुख और कॉरपोरेट जगत को भारत में खेलों के और विकास के लिए कदम उठाना बहुत जरूरी है नहीं तो इस ओलम्पिक की उपलब्धि केवल इतिहास के पन्नों तक ही सिमट कर रह जाएगी। स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिन्द्रा से एक पत्रकार ने उनके भारत लौटने पर प्रश्न किया कि ये अभिनव का गोल्ड मेडल है या भारत का? तो उनका जवाब कुछ इस प्रकार था, “यदि देश में खेल क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन लाए गए जो निश्चय ही यह भारत का स्वर्ण पदक रहेगा परन्तु यदि ऐसा न हुआ तो अभिनव की एक पल की यह व्यक्तिगत उपलब्धि देश की अनगिनत असफलताओं के बीच दब कर रह जाएगी।”बीजींग ओलम्पिक में भारतीय खिलाडि़यों की सफलता इस मायने में प्रासंगिक है कि इसने पिछले वर्षों से अंतराष्ट्रीय खेल प्रतिस्पद्धाओं में देश के चक दे इंडिया अभियान को अपने उत्कृष्ट प्रदर्शनों के बदौलत मजबूती और निरंतरता प्रदान की है। इसके साथ ये सफलता प्रासंगिक इसीलिए भी है क्योंकि इसने वर्तमान प्रदर्शन से भी बढ-चढकर प्रदर्शन के लिए देश में समुचित संसाधन तैयार करने की आवश्यकता को बड़ी शिद्यत से महसूस कराया है।
बीजींग ओलम्पिक में भारतीय खिलाडि़यों ने अब तक का उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। ये खिलाड़ी एक नए भारत, जिसमें शहरी-देहाती, धनी-गरीब सभी की महत्वाकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व है, की तस्वीर सारी दुनिया को दिखला रहे हैं। लेकिन अन्य देशों के मुकाबले हमारे देश का प्रदर्शन काफी फीका रहा है। भारत से काफी छोटे-छोटे देशों जैसे जमैका, पोलैंड, लातविया आदि ने काफी ओलम्पिक मेडल हासिल किए हैं, पड़ोसी देश चीन पदक तालिका में द्वितीय स्थान(स्वर्ण पदकों में प्रथम स्थान) पर था जबकि हम किसी प्रकार 51वें स्थान पर ही पहुँच सके। हमारे राष्ट्रीय खेल हॉकी की टीम के साथ फुटबॉल और बास्केट बॉल की टीमें तो इस ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई भी नहीं कर सकी थी। बीजींग गई 56 सदस्यीय भारतीय टीम ने देश को केवल 3 पदक से संतोष करने को मजबूर कर दिया। अब तो यह राष्ट्रीय बहस का मुद्या बना हुआ है कि एक अरब से अधिक आबादी का देश क्या इतने ही पदक जीतने की क्षमता रखता है? आलोचक तो यहॉं तक कहने लगे हैं कि “ओलम्पिक खेलों में भारत की भागीदारी करदाताओं के पैसों की बरबादी से बढ़कर कुछ भी नहीं है।”
आजकल भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता के आगे बाकी खेल दब से गए हैं। परंतु ओलंपिक खेलों में एक समय भारतीय हॉकी का एकछत्र राज रहा था। इस खेल ने केवल ओलंपिक खेलों में ही 11 मेडल (जिनमें 8 स्वर्ण) देश को दिलवाए हैं। साथ ही समय-समय पर नॉर्मन गिल्बर्ट प्रीथार्ड (भारत के लिए प्रथम मेडल जीतने वाले एंग्लो-इंडियन), के.डी. जाधव, लिएंडर पेस, कर्णम मल्लेश्वरी तथा राज्यवर्धन राठौर ने देश के लिए पदक हासिल किए हैं। हाल के वर्षों में विभिन्न प्रतियोगिताओं में नारायण कार्तिकेयन ने प्रथम ए-वन जीपी(फॉर्मूला कार रेसिंग) जीता, डोला बनर्जी ने विश्व कप तीरंदाजी अपने नाम की, तो विश्वनाथन आनंद ने विश्व शतरंज चैम्पियनशिप जीत कर दिखाया। टीम खेलों की बात करें तो फुटबॉल में भारतीय खिलाडि़यों ने नेहरू कप और ओ.एन.जी.सी. कप हासिल कर दिखाया तो हॉकी में एशिया कप दक्षिण कोरिया से जीतने में हम सफल रहे। इस प्रकार फिल्म चक दे इंडिया का प्रेरक प्रभाव इन खेलों में मिली जीत के रूप में भी झलका था।
बीजींग ओलम्पिक में खिलाडि़यों के उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन ने देश को भविष्य में और अच्छे प्रदर्शनों की आशाऍं जगाई हैं। वैसे भी भारत में खासकर गॉंवों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। हमारे पारंपरिक खेलों जैसे कुश्ती, तीरंदाजी आदि में इनकी प्रतिभा को पहचानकर और रणनीतिक तरीके से प्रशिक्षित कर विश्व-स्तरीय प्रतियोगिताओं के लिए इन्हें तैयार किया जा सकता है। पड़ोसी देश चीन में अगर प्रत्येक 100 में 30 बच्चे एथलीट होते हैं तो इस वजह से कि वहॉं के हर प्रान्त में खेल प्रशिक्षण कार्यक्रम बारहों मास चलते रहते हैं। देश में बहुविधीय खेलों के विकास के लिए हर राज्य में इन सभी खेलों के लिए एक लीग होना चाहिए जिसके राष्ट्रीय नेटवर्क का भी गठन करने की जरूरत है। सभी खेलों के खिलाडि़यों के लिए उत्कृष्ट कोच, आवश्यकतानुसार विदेशी कोच भी, उनके जूनियर स्तर से ही लगा देना चाहिए। खेल प्रशासन संभालने के लिए संबंधित खेलों के अनुभवी लोगों को ही नियुक्त करना निहायत जरूरी है। पोषण का खिलाड़ी के प्रदर्शन से सीधा संबंध होता है। अत: राष्ट्रीय कैंपों में उत्कृष्ट पोषक पदार्थ की आपूर्ति की जानी बहुत जरूरी है। चोटिल खिलाडि़यों को अनदेखा करने या निकालने के बजाय उनके पुनर्वास की व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि भविष्य में उनसे अच्छे प्रदर्शन की आशा बनी रहे। कॉरपोरेट समूहों को चाहिए कि वे सिर्फ क्रिकेटरों के पीछे भागने के बजाय अन्य खेल के खिलाडि़यों को भी स्पांसर किया करें। वे भी इस प्रोत्साहन से अच्छे प्रदर्शन कर भविष्य में उनके उत्पादों के लिए अच्छे ब्रांड एम्बेस्डर सिद्ध हो सकते हैं। आई.पी.एल. क्रिकेट की तर्ज पर इन खेलों में भी अभिनव प्रयोग कर व्यावसायिकता के प्रवेश के साथ बेहतर प्रदर्शन को प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ ही आम लोगों की रूचि भी इन खेलों में जगाई जा सकती है। खेलों में राजनीति दीमक की तरह होती है जिससे खेलों को दूर रखना परमावश्यक है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सरकार, खेल प्रशासकों, भारतीय ओलम्पिक कमिटी प्रमुख और कॉरपोरेट जगत को भारत में खेलों के और विकास के लिए कदम उठाना बहुत जरूरी है नहीं तो इस ओलम्पिक की उपलब्धि केवल इतिहास के पन्नों तक ही सिमट कर रह जाएगी। स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिन्द्रा से एक पत्रकार ने उनके भारत लौटने पर प्रश्न किया कि ये अभिनव का गोल्ड मेडल है या भारत का? तो उनका जवाब कुछ इस प्रकार था, “यदि देश में खेल क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन लाए गए जो निश्चय ही यह भारत का स्वर्ण पदक रहेगा परन्तु यदि ऐसा न हुआ तो अभिनव की एक पल की यह व्यक्तिगत उपलब्धि देश की अनगिनत असफलताओं के बीच दब कर रह जाएगी।”बीजींग ओलम्पिक में भारतीय खिलाडि़यों की सफलता इस मायने में प्रासंगिक है कि इसने पिछले वर्षों से अंतराष्ट्रीय खेल प्रतिस्पद्धाओं में देश के चक दे इंडिया अभियान को अपने उत्कृष्ट प्रदर्शनों के बदौलत मजबूती और निरंतरता प्रदान की है। इसके साथ ये सफलता प्रासंगिक इसीलिए भी है क्योंकि इसने वर्तमान प्रदर्शन से भी बढ-चढकर प्रदर्शन के लिए देश में समुचित संसाधन तैयार करने की आवश्यकता को बड़ी शिद्यत से महसूस कराया है।
Friday, August 22, 2008
बोधगया की सैर
दोस्तों, आप सभी ने बोधगया का नाम तो जरूर सुना होगा। यह भारत के बिहार राज्य में बौद्धों का बहुत बड़ा तीर्थ स्थल है। यहीं उन्होंने अपना घर त्याग कर कई दिनों तक भूखे-प्यासे रहकर ज्ञान प्राप्ति हेतु तपस्या की। अंतत: उन्हें परम ज्ञान की प्राप्ति हुई जिस कारण इस स्थान का नाम बोधगया पडा।
पिछले महीने मैं एक शादी के सिलसिले में गया पहुँचा तो वहॉं जाने का मौका गँवाना उचित न समझा। आइए, आपको वहॉं की सैर अपने मोबाइल कैमरे द्वारा स्नैप की गई तस्वीरों के माध्यम से कराऊँ।
1. पहली तस्वीर में गौतम बुद्ध के पॉंवों के निशान हैं। यह भारत सरकार द्वारा बनवाए गए बौद्ध मंदिर में शीशे के क्लोजेट में रखे गए हैं।
2. दूसरी तस्वीर भूटान सरकार द्वारा बनवाया बौद्ध मंदिर हैं। इसकी छत के मेहराब काफी सुंदर बने हैं।
3. तीसरी तस्वीर जापान सरकार द्वारा महात्मा बुद्ध की बनवायी गयी काफी विशाल मूर्ति है। यह देखने में काफी अच्छी लगती है।
4. इस तस्वीर में जो वृक्ष दिख रहा है उसी पेड़ के नीचे महात्मा बुद्ध ने तपस्या की थी। इसे महाबोधि वृक्ष कहते हैं।
5. यह भी किसी अन्य देश द्वारा बनवाई गई मूर्ति है।
6. यह मंदिर ब्रिटिश जमाने में ही बना था। यह बोधगया का सबसे अच्छा मंदिर है।
Wednesday, August 20, 2008
टेलीफोन पर रोमांटिक बातचीत
इंगेजमेंट पश्चात् लड़के-लड़की की प्यार भरी बातों के कुछ अंश
शादी से पहले मैं हमेशा सोचा करता था कि जिस लड़की से मेरी शादी होगी उससे पूछ लूंगा कि वो मुझसे शादी करना चाहती है या नहीं. घरवालों ने बताया कि लड़की अच्छी है और शादी कर लो तो मेरी उससे बात करने की उत्सुकता और बढ़ गई. मैं अपनी होने वाली रानी से बात करना चाह रहा था. आखिरकार मैंने हिम्मत की और अपने होने वाले ससुराल में फोन लगाकर अपना परिचय दिया और कहा, कोमल (मेरी होने वाली बीवी) से बात करा सकते हैं क्या? उधर से आवाज आई, “मैं भी यही सोच रहा था, मगर सोचा आप कुछ गलत न सोच लें.” उसी रात करीब साढ़े आठ बजे रिंग हुआ. मैंने मोबाइल उठाया, उधर से किसी लड़की की मधुर आवाज आई, “प्रणाम.”मैंने पूछा, “आप कौन.”
उधर से आवाज आई, “जी, मैं कोमल. आपसे कई दिनों से बात करने का मन कर रहा था, अभी घर में कोई नहीं है, इसलिए आप से बात कर रही हूं.”“भैया और भाभी कहां है.” मैंने पूछा,
वो बोली, “भाभी मैके में है और भैया पूजा में गए हैं.”“और मम्मी”, मैंने पूछा.“वो तो पापा के साथ रहती हैं.” कोमल बोली
”तो इस तरह आपको मुझ से बात नहीं करनी चाहिए न”, मैंने उससे पूछा।“क्यों”, उसने सवाल किया.“इस तरह छुपकर किसी गैर मर्द से बात करना ठीक तो नहीं है न”, मैंने फिर सवाल किया.“अब आप गैर कहां हैं”, उसने कहा.“तो अपना बन गया हूं”, मैंने पूछा. “तभी तो बात कर रही हूं.” उधर से जवाब आया।“कुछ देखा न सुना कैसे अपना बना ली?” मैंने भी मजा लिया “काफी देख सुन लिया” कोमल बोली।“अब बाकी कुछ भी नहीं है?” मैंने पुन: उससे चुहल की।“नहीं”, उसने हर्षित होकर कहा.कुछ दिन हुए, अपने दिल की रानी की आवाज फोन पर सुनकर मेरा दिल धड़क उठा.खुद पर काबू पाते हुए पूछा, “आप कैसी है.”उसने कहा, “मैं अच्छी हूं, आप कैसे हैं.”“मैं भी अच्छा हूं, आपकी पढ़ाई कैसी चल रही है”, मैंने पूछा.“मुझे आप क्यों कहते हैं”, उसने कहा.“तब क्या कहूं”, मैंने पूछा.“तुम कहिए”.“मैं तो आपको आप ही कहूंगा”, मैंने थोड़ा मजाक के लहजे में कहा.
“अच्छा नहीं लगेगा, प्लीज, तुम कहिए न।” उसने सविनय आग्रह किया.“लेकिन” मैंने कहा, “नहीं आपको आप कहने में अच्छा लगता है.”“ठीक है, तो आप कब आ रहे हैं?”, कोमल ने पूछा।“क्यों”, मैंने पूछा.“आते तो जल्दी शादी हो जाती.” वो बोली।“इतनी जल्दी शादी क्यों?”, मैंने पूछा“शादी हो जाती तो मैं आपके साथ रहती और आपकी सेवा का मौका मिलता.” कोमल बोली।“अभी तो छुट्टी नहीं मिलेगी.” मैंने कहा।“दो चार-दिन की भी छुट्टी लेकर आ जाइये शादी करके चले जाइएगा.” उसने आग्रह किया.“ठीक है कोशिश करूंगा.” मैंने कहा“थोड़ी जल्दी करिए.” उसके आवाज में बेसब्री झलकी।“इतनी भी जल्दी क्या है.” मैं निश्चिंतता से बोला।“जब से आपके बारे में सुनी हूं तब से मन नहीं लग रहा है.”“देखने का मन नहीं करता है क्या?” मैंने उससे पूछा।“करता तो है लेकिन शादी के बाद हमेशा देखूंगी”“लेकिन मैं आपको देखना चाहता हूं शादी से पहले.”“देखने बाद कहीं ना कर दिए तो” उसने चिढ़ाने के लिए कहा।“अपने पर भरोसा नहीं है.”“इतना तो है कि आपको पसंद आ जाऊंगी.”, वो पूरे विश्वास से बोली।उस रात बात करते करते एक घंटा से ज्यादा समय हो गया.“वो बोली, अब पंद्रह रोज मैं आपसे बातचीत नहीं कर पाऊंगी.”“क्यों”, मैंने पूछा.“भैया के सेल पर बात करना ठीक नहीं लगता है, मम्मी आएगी तो बात करूंगी.”“मैं आपसे बात किए बगैर कैसे रहूंगा.”, मैंने बेचैन होते हुए कहा।“ऐसी भी क्या बेसब्री?”“अपनी एक फोटो भेजिए न.” मैंने आग्रह किया.“अभी कोई अच्छा फोटो नहीं है, खिंचवाऊंगी तो भेज दूंगी. तो अभी फोन रखती हूं, मम्मी आएंगी तो बात करूंगी.”इस बीच मैंने कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुआ, लेकिन उसका फोटो आ गया. ब्लैक एंड ह्वाइट में वो पुरानी फिल्मों की हिरोईन जैसी खूबसूरत दिख रही थी.उसी रात कोमल का फोन आया.कुशल क्षेम के बाद उसने पूछा, “फोटो मिल गया है.”मैंने मजाक में कहा, “यार तुम्हारा ही फोटो है न.”कोमल चिढ़ती हुई बोली, “नहीं, मेरी सहेली की है.”“सच यार विश्वास नहीं हो रहा है कि तुम इतनी सुंदर होगी.”“इतनी भी सुंदर नहीं हूं, बस आपको पसंद आ जाऊंगी.”“लेकिन फोटो में तो बड़ी सुंदर दिख रही हो,” मैंने उसकी प्रशंसा की।“ब्लैक एंड ह्वाइट में हूं न इसलिए”, उसने कहा।
“सच यार ये फोटो वाली लड़की तो छेड़ने लायक है, इसकी लटें तो सँवारने लायक है। मिलती तो जरूर छेड़ता.”, मैंने चुहल की।“आप ऐसे तो नहीं हैं.”“हूं तो नहीं लेकिन मन तो खूब करता है ये लड़की यानी तुम अभी मिल जाती तो प्यार से होंठों को चूम लेता. अभी एक चुंबन दे दो न.”“ले लीजिए.”मैंने भी उसी समय फोन पर ही उसे प्यार से चूम लिया. बोली, “कितने दिनों तक यू ही काम चलाएगा.”“तो क्या करें?” मैंने पूछा।“कुछ नहीं, शादी करके मुझे ले चलिए फिर अपनी रानी को बांहों में भरकर जब दिल करे उसके रसीले होठों को चूमते रहिए.” उसने कातिलाना अंदाज में कहा।“तो शादी करने का बहुत मन करता है?”, मैंने उसके मन की थाह ली।“क्या कहूं शादी की उम्र कब की हो गई है, अब तो बस यही जी चाहता है कितनी जल्दी आपके बांहों के घेरे में आ जाऊं.”इस तरह प्यार मोहब्बत की बातें वही शुरू करती थी. हम घंटो बातचीत करते रहते थे.फिर अगले कुछ दिनों तक बात नहीं हो पाई. मैं बेचैन था. शायद मेरी बेचैनी का ख्याल उसे आ ही गया है. उसने फोन किया. बहुत ज्यादा खुश थी.“क्या बात है, आज बहुत खुश दिख रही हो.”“आपसे बात जो कर रही हूं.”“मुझ से बात करना इतना अच्छा लगता है.”“क्या बताऊं, बहुत ही अच्छा लगता है. एक रोज बात नहीं करती हूं तो दिल बेचैन हो उठता है.”“शादी के बाद भी मेरी बात तुम्हें इतनी ही अच्छी लगेगी.”“वादा नहीं करती हूं, लेकिन इतना जरूर कहती हूं, आपको हर परिस्थितियों में हर तरह से खुश रखूंगी. हर कदम पर आपका साथ दूंगी.”“कोमल, मैंने तो सपनों में भी नहीं सोचा था कि मुझे कोई लड़की इतना चाहेगी.”“आज आपसे ज्यादा बात नहीं कर पाऊंगी, कल अगर मम्मी रह गई तो फोन करिएगा.”“ठीक है तो गुड नाइट, कल बात करेंगे.”अगले दिन उनकी मम्मी चली गई, बात नहीं हो पाई.अगली बार उन्होंने कुछ ऐसी बात की कि मन बहकने लगा.मैंने पूछा, “बहुत थकी लग रही हो, क्या बात है. तबीयत खराब थी क्या.”“मेहमान आए हुए थे, आज ही विदा हुए. इस बार उन्होंने बहुत परेशान किया.”मैंने पूछा, “कौन मेहमान.”“वही तो हर महीने आते हैं.” “कौन मेहमान हर महीने आते हैं.”“मेन्स.”
“हाय, मेरी तेरे पास होता तो कितना मजा आता, रातभर तुम्हें सोने नहीं देता।”“ऐसा नसीब अभी मेरे कहां कि अभी आपका साथ मिले?”“कोमल, अब जी चाहता है कि तुमसे जल्दी शादी कर लें.”“झूठ.”“झूठ नहीं मेरी रानी, बिल्कुल सच कहता हूं. अब तुम्हारे बगैर एक पल भी रहना मुश्किल लग रहा है.”अब हमलोग काफी खुल चुके थे.कुछ दिनों के बाद फिर बातचीत शुरू हुई. मैंने पूछा, “ऊपर वाले बाबू का क्या हाल है.”“अच्छी है.”, उसने संक्षिप्त उत्तर दिया।“नीचे वाली.”, मैंने पुन: उसे कोंचा।“वो थोड़ी बचैन है”, उसने भी मजेदार जवाब दिया।सबेरे करीब चार बजे फिर कोमल का फोन आयाकोमल बहुत खुश थी.बोली, “प्रणाम”“कैसी हो, गहरी नींद में थी.”, मैंने उससे पूछा।“हां”, बोली, “मम्मी सबेरे चली जाएगी, फिर महीनेभर आपसे बात नहीं हो पाएगी. इसलिए आपको अभी फोन किया.”“जानती हो अभी कौन समय है.”, मैंने उससे पूछा।“कौन?”“अभी प्यार करने का समय होता है. अभी पति-पत्नी दोनों प्यार करते है.”, मैंने रोमांटिक तरीके से समझाया।“रात में मेरे उतने किस से मन नहीं भरा.”, वो बोली।“प्यार से कहीं मर्द का मन भरता है”, मैंने उससे पूछा।“अभी एकबार फिर किस करो ना.”“अभी पूजा के लिए फूल लाना है.”, उसने जान-बूझ कर मुझे टरकाया।“पति को खुश रखोगी तो भगवान भी खुश रहेंगे.”“वो तो है.”“इतना प्यार करेंगे हमें.” उसने पूछा।“हां मेरी रानी.” “धन्य धन्य हो गई मैं.”फिर एक महीने बाद हमारी बात हुई.“साहब मई महीने में लगन है, शादी कर ले चलिए न.” “पहले तुम्हारे लिए एक अच्छा फ्लैट ले लेता हूं.”, मैंने कहा।“क्या हम उसमें नहीं रह सकते हैं.”, कोमल ने पूछा।“रह सकते हैं लेकिन इसका बाथरूम बहुत छोटा है न.”“तो क्या.”“तो बाथरूम में दोनों साथ साथ कैसे मजे से नहाएंगे?”, मैंने पूछा।“साथ नहाना जरूरी है, रोज आपके साथ रात में बेड पर सोना तो है ही” उसने समझाया।
”कभी मना तो नहीं करोगी.”, मैंने जानना चाहा।“इतना तो जानती हूं कि जब पति का मन प्यार करने का हो तो खुशी-खुशी तैयार हो जाना चाहिए”, वो बोली।“हाय मेरी रानी, सब कुछ मिल जाएगा लेकिन तुम जैसी बीबी कहीं नहीं मिलेगी.”, मैंने उससे कहा। “बस मेरे राजा, अब अपनी रानी को जल्दी ले जाइए.”, वो बेकरार होकर बोली।“हवाई जहाज का टिकट ले लेता हूं.”, मैंने कहा।“क्यों उतना पैसा बेकार में खर्च करिएगा.”, वो थोड़े अधिकार से बोली।
“बेकार क्यों, ट्रेन से आने में तीन दिन लग जाएगा. हवाई जहाज से पॉंच घंटे में पहुंच जाएंगे. दो दिन तुम्हारे साथ रहूंगा तो सारा पैसा वसूल हो जाएगा.”, मैंने स्पष्ट किया।“ट्रेन में रिजर्वेशन करा लीजिएगा तो वहां साथ में रहने में दिक्कत होगी क्या.” कोमल बोली।उस बात पर हंसी आ गई.मैं बोला, “ट्रेन में पूरी ट्रेन बुक थोड़े होती है. सीट की बुकिंग होगी. वहां तुम्हें कैसे मन मुताबिक प्यार करेंगे”“अच्छा, क्या होगा, दो दिन बाद ही जी भर के प्यार कर लीजिएगा”. वो बोली। “अच्छा तुम्हारे लिए क्या लाऊंगा?”. मैंने उससे पूछा।
“बस आप ही आ जाइए वही मेरे लिए सब कुछ है। आपने गाना तो सुना ही होगा;’एक तेरा साथ हमको दो जहॉं से प्यारा है, तू है तो हर सहारा है”, उसने भावुक होकर कहा। उसकी ये बातें मेरे दिल को छू गईं।
समाप्त
स्पष्टीकरण
ये मेरी मूल रूप से तैयार की गई रचना नहीं है। किसी ब्लॉगिंग साइट पर व्यस्कों के लिए लिखी गई इस कहानी, जिसमें मूल संवाद का लगभग 40 प्रतिशत अपने आप में अश्लीलता को समेटे हुए था; को मैंने संपादित कर सबके मनोरंजन के लिए तैयार किया है। इस कहानी के मूल लेखक से मैं अपनी धृष्टता के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
शादी से पहले मैं हमेशा सोचा करता था कि जिस लड़की से मेरी शादी होगी उससे पूछ लूंगा कि वो मुझसे शादी करना चाहती है या नहीं. घरवालों ने बताया कि लड़की अच्छी है और शादी कर लो तो मेरी उससे बात करने की उत्सुकता और बढ़ गई. मैं अपनी होने वाली रानी से बात करना चाह रहा था. आखिरकार मैंने हिम्मत की और अपने होने वाले ससुराल में फोन लगाकर अपना परिचय दिया और कहा, कोमल (मेरी होने वाली बीवी) से बात करा सकते हैं क्या? उधर से आवाज आई, “मैं भी यही सोच रहा था, मगर सोचा आप कुछ गलत न सोच लें.” उसी रात करीब साढ़े आठ बजे रिंग हुआ. मैंने मोबाइल उठाया, उधर से किसी लड़की की मधुर आवाज आई, “प्रणाम.”मैंने पूछा, “आप कौन.”
उधर से आवाज आई, “जी, मैं कोमल. आपसे कई दिनों से बात करने का मन कर रहा था, अभी घर में कोई नहीं है, इसलिए आप से बात कर रही हूं.”“भैया और भाभी कहां है.” मैंने पूछा,
वो बोली, “भाभी मैके में है और भैया पूजा में गए हैं.”“और मम्मी”, मैंने पूछा.“वो तो पापा के साथ रहती हैं.” कोमल बोली
”तो इस तरह आपको मुझ से बात नहीं करनी चाहिए न”, मैंने उससे पूछा।“क्यों”, उसने सवाल किया.“इस तरह छुपकर किसी गैर मर्द से बात करना ठीक तो नहीं है न”, मैंने फिर सवाल किया.“अब आप गैर कहां हैं”, उसने कहा.“तो अपना बन गया हूं”, मैंने पूछा. “तभी तो बात कर रही हूं.” उधर से जवाब आया।“कुछ देखा न सुना कैसे अपना बना ली?” मैंने भी मजा लिया “काफी देख सुन लिया” कोमल बोली।“अब बाकी कुछ भी नहीं है?” मैंने पुन: उससे चुहल की।“नहीं”, उसने हर्षित होकर कहा.कुछ दिन हुए, अपने दिल की रानी की आवाज फोन पर सुनकर मेरा दिल धड़क उठा.खुद पर काबू पाते हुए पूछा, “आप कैसी है.”उसने कहा, “मैं अच्छी हूं, आप कैसे हैं.”“मैं भी अच्छा हूं, आपकी पढ़ाई कैसी चल रही है”, मैंने पूछा.“मुझे आप क्यों कहते हैं”, उसने कहा.“तब क्या कहूं”, मैंने पूछा.“तुम कहिए”.“मैं तो आपको आप ही कहूंगा”, मैंने थोड़ा मजाक के लहजे में कहा.
“अच्छा नहीं लगेगा, प्लीज, तुम कहिए न।” उसने सविनय आग्रह किया.“लेकिन” मैंने कहा, “नहीं आपको आप कहने में अच्छा लगता है.”“ठीक है, तो आप कब आ रहे हैं?”, कोमल ने पूछा।“क्यों”, मैंने पूछा.“आते तो जल्दी शादी हो जाती.” वो बोली।“इतनी जल्दी शादी क्यों?”, मैंने पूछा“शादी हो जाती तो मैं आपके साथ रहती और आपकी सेवा का मौका मिलता.” कोमल बोली।“अभी तो छुट्टी नहीं मिलेगी.” मैंने कहा।“दो चार-दिन की भी छुट्टी लेकर आ जाइये शादी करके चले जाइएगा.” उसने आग्रह किया.“ठीक है कोशिश करूंगा.” मैंने कहा“थोड़ी जल्दी करिए.” उसके आवाज में बेसब्री झलकी।“इतनी भी जल्दी क्या है.” मैं निश्चिंतता से बोला।“जब से आपके बारे में सुनी हूं तब से मन नहीं लग रहा है.”“देखने का मन नहीं करता है क्या?” मैंने उससे पूछा।“करता तो है लेकिन शादी के बाद हमेशा देखूंगी”“लेकिन मैं आपको देखना चाहता हूं शादी से पहले.”“देखने बाद कहीं ना कर दिए तो” उसने चिढ़ाने के लिए कहा।“अपने पर भरोसा नहीं है.”“इतना तो है कि आपको पसंद आ जाऊंगी.”, वो पूरे विश्वास से बोली।उस रात बात करते करते एक घंटा से ज्यादा समय हो गया.“वो बोली, अब पंद्रह रोज मैं आपसे बातचीत नहीं कर पाऊंगी.”“क्यों”, मैंने पूछा.“भैया के सेल पर बात करना ठीक नहीं लगता है, मम्मी आएगी तो बात करूंगी.”“मैं आपसे बात किए बगैर कैसे रहूंगा.”, मैंने बेचैन होते हुए कहा।“ऐसी भी क्या बेसब्री?”“अपनी एक फोटो भेजिए न.” मैंने आग्रह किया.“अभी कोई अच्छा फोटो नहीं है, खिंचवाऊंगी तो भेज दूंगी. तो अभी फोन रखती हूं, मम्मी आएंगी तो बात करूंगी.”इस बीच मैंने कई बार बात करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुआ, लेकिन उसका फोटो आ गया. ब्लैक एंड ह्वाइट में वो पुरानी फिल्मों की हिरोईन जैसी खूबसूरत दिख रही थी.उसी रात कोमल का फोन आया.कुशल क्षेम के बाद उसने पूछा, “फोटो मिल गया है.”मैंने मजाक में कहा, “यार तुम्हारा ही फोटो है न.”कोमल चिढ़ती हुई बोली, “नहीं, मेरी सहेली की है.”“सच यार विश्वास नहीं हो रहा है कि तुम इतनी सुंदर होगी.”“इतनी भी सुंदर नहीं हूं, बस आपको पसंद आ जाऊंगी.”“लेकिन फोटो में तो बड़ी सुंदर दिख रही हो,” मैंने उसकी प्रशंसा की।“ब्लैक एंड ह्वाइट में हूं न इसलिए”, उसने कहा।
“सच यार ये फोटो वाली लड़की तो छेड़ने लायक है, इसकी लटें तो सँवारने लायक है। मिलती तो जरूर छेड़ता.”, मैंने चुहल की।“आप ऐसे तो नहीं हैं.”“हूं तो नहीं लेकिन मन तो खूब करता है ये लड़की यानी तुम अभी मिल जाती तो प्यार से होंठों को चूम लेता. अभी एक चुंबन दे दो न.”“ले लीजिए.”मैंने भी उसी समय फोन पर ही उसे प्यार से चूम लिया. बोली, “कितने दिनों तक यू ही काम चलाएगा.”“तो क्या करें?” मैंने पूछा।“कुछ नहीं, शादी करके मुझे ले चलिए फिर अपनी रानी को बांहों में भरकर जब दिल करे उसके रसीले होठों को चूमते रहिए.” उसने कातिलाना अंदाज में कहा।“तो शादी करने का बहुत मन करता है?”, मैंने उसके मन की थाह ली।“क्या कहूं शादी की उम्र कब की हो गई है, अब तो बस यही जी चाहता है कितनी जल्दी आपके बांहों के घेरे में आ जाऊं.”इस तरह प्यार मोहब्बत की बातें वही शुरू करती थी. हम घंटो बातचीत करते रहते थे.फिर अगले कुछ दिनों तक बात नहीं हो पाई. मैं बेचैन था. शायद मेरी बेचैनी का ख्याल उसे आ ही गया है. उसने फोन किया. बहुत ज्यादा खुश थी.“क्या बात है, आज बहुत खुश दिख रही हो.”“आपसे बात जो कर रही हूं.”“मुझ से बात करना इतना अच्छा लगता है.”“क्या बताऊं, बहुत ही अच्छा लगता है. एक रोज बात नहीं करती हूं तो दिल बेचैन हो उठता है.”“शादी के बाद भी मेरी बात तुम्हें इतनी ही अच्छी लगेगी.”“वादा नहीं करती हूं, लेकिन इतना जरूर कहती हूं, आपको हर परिस्थितियों में हर तरह से खुश रखूंगी. हर कदम पर आपका साथ दूंगी.”“कोमल, मैंने तो सपनों में भी नहीं सोचा था कि मुझे कोई लड़की इतना चाहेगी.”“आज आपसे ज्यादा बात नहीं कर पाऊंगी, कल अगर मम्मी रह गई तो फोन करिएगा.”“ठीक है तो गुड नाइट, कल बात करेंगे.”अगले दिन उनकी मम्मी चली गई, बात नहीं हो पाई.अगली बार उन्होंने कुछ ऐसी बात की कि मन बहकने लगा.मैंने पूछा, “बहुत थकी लग रही हो, क्या बात है. तबीयत खराब थी क्या.”“मेहमान आए हुए थे, आज ही विदा हुए. इस बार उन्होंने बहुत परेशान किया.”मैंने पूछा, “कौन मेहमान.”“वही तो हर महीने आते हैं.” “कौन मेहमान हर महीने आते हैं.”“मेन्स.”
“हाय, मेरी तेरे पास होता तो कितना मजा आता, रातभर तुम्हें सोने नहीं देता।”“ऐसा नसीब अभी मेरे कहां कि अभी आपका साथ मिले?”“कोमल, अब जी चाहता है कि तुमसे जल्दी शादी कर लें.”“झूठ.”“झूठ नहीं मेरी रानी, बिल्कुल सच कहता हूं. अब तुम्हारे बगैर एक पल भी रहना मुश्किल लग रहा है.”अब हमलोग काफी खुल चुके थे.कुछ दिनों के बाद फिर बातचीत शुरू हुई. मैंने पूछा, “ऊपर वाले बाबू का क्या हाल है.”“अच्छी है.”, उसने संक्षिप्त उत्तर दिया।“नीचे वाली.”, मैंने पुन: उसे कोंचा।“वो थोड़ी बचैन है”, उसने भी मजेदार जवाब दिया।सबेरे करीब चार बजे फिर कोमल का फोन आयाकोमल बहुत खुश थी.बोली, “प्रणाम”“कैसी हो, गहरी नींद में थी.”, मैंने उससे पूछा।“हां”, बोली, “मम्मी सबेरे चली जाएगी, फिर महीनेभर आपसे बात नहीं हो पाएगी. इसलिए आपको अभी फोन किया.”“जानती हो अभी कौन समय है.”, मैंने उससे पूछा।“कौन?”“अभी प्यार करने का समय होता है. अभी पति-पत्नी दोनों प्यार करते है.”, मैंने रोमांटिक तरीके से समझाया।“रात में मेरे उतने किस से मन नहीं भरा.”, वो बोली।“प्यार से कहीं मर्द का मन भरता है”, मैंने उससे पूछा।“अभी एकबार फिर किस करो ना.”“अभी पूजा के लिए फूल लाना है.”, उसने जान-बूझ कर मुझे टरकाया।“पति को खुश रखोगी तो भगवान भी खुश रहेंगे.”“वो तो है.”“इतना प्यार करेंगे हमें.” उसने पूछा।“हां मेरी रानी.” “धन्य धन्य हो गई मैं.”फिर एक महीने बाद हमारी बात हुई.“साहब मई महीने में लगन है, शादी कर ले चलिए न.” “पहले तुम्हारे लिए एक अच्छा फ्लैट ले लेता हूं.”, मैंने कहा।“क्या हम उसमें नहीं रह सकते हैं.”, कोमल ने पूछा।“रह सकते हैं लेकिन इसका बाथरूम बहुत छोटा है न.”“तो क्या.”“तो बाथरूम में दोनों साथ साथ कैसे मजे से नहाएंगे?”, मैंने पूछा।“साथ नहाना जरूरी है, रोज आपके साथ रात में बेड पर सोना तो है ही” उसने समझाया।
”कभी मना तो नहीं करोगी.”, मैंने जानना चाहा।“इतना तो जानती हूं कि जब पति का मन प्यार करने का हो तो खुशी-खुशी तैयार हो जाना चाहिए”, वो बोली।“हाय मेरी रानी, सब कुछ मिल जाएगा लेकिन तुम जैसी बीबी कहीं नहीं मिलेगी.”, मैंने उससे कहा। “बस मेरे राजा, अब अपनी रानी को जल्दी ले जाइए.”, वो बेकरार होकर बोली।“हवाई जहाज का टिकट ले लेता हूं.”, मैंने कहा।“क्यों उतना पैसा बेकार में खर्च करिएगा.”, वो थोड़े अधिकार से बोली।
“बेकार क्यों, ट्रेन से आने में तीन दिन लग जाएगा. हवाई जहाज से पॉंच घंटे में पहुंच जाएंगे. दो दिन तुम्हारे साथ रहूंगा तो सारा पैसा वसूल हो जाएगा.”, मैंने स्पष्ट किया।“ट्रेन में रिजर्वेशन करा लीजिएगा तो वहां साथ में रहने में दिक्कत होगी क्या.” कोमल बोली।उस बात पर हंसी आ गई.मैं बोला, “ट्रेन में पूरी ट्रेन बुक थोड़े होती है. सीट की बुकिंग होगी. वहां तुम्हें कैसे मन मुताबिक प्यार करेंगे”“अच्छा, क्या होगा, दो दिन बाद ही जी भर के प्यार कर लीजिएगा”. वो बोली। “अच्छा तुम्हारे लिए क्या लाऊंगा?”. मैंने उससे पूछा।
“बस आप ही आ जाइए वही मेरे लिए सब कुछ है। आपने गाना तो सुना ही होगा;’एक तेरा साथ हमको दो जहॉं से प्यारा है, तू है तो हर सहारा है”, उसने भावुक होकर कहा। उसकी ये बातें मेरे दिल को छू गईं।
समाप्त
स्पष्टीकरण
ये मेरी मूल रूप से तैयार की गई रचना नहीं है। किसी ब्लॉगिंग साइट पर व्यस्कों के लिए लिखी गई इस कहानी, जिसमें मूल संवाद का लगभग 40 प्रतिशत अपने आप में अश्लीलता को समेटे हुए था; को मैंने संपादित कर सबके मनोरंजन के लिए तैयार किया है। इस कहानी के मूल लेखक से मैं अपनी धृष्टता के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।
Tuesday, August 12, 2008
शादी पर मेरी लिखी एक हास्य कविता
शादी का सच
लो हो गई शादी आपके भाई की,
अब क्या, आएगी बारी अब आपकी।
फिर आएंगे रिश्ते इस कमाऊ पूत के,
फोटो-कुंडली ले कर कराऍं उन्हें नाश्ते।
फोटो-कुंडली जमी तो आगे(दहेज) की बात होगी,
खूब वसूलेंगे धन, तभी तो समाज में अपनी नाक होगी।
लो डील अब तो हो गया फाइनल,
लड़की से बात करने का पापा ने दिया सिग्नल ।
कहॉं थे अंजान, अब तो पहना दी एक दूजे को अंगूठी,
सभी हैं राजी; फोन, एस.एम.एस. से करेंगे वादे सच्ची-झूठी ।
विवाह पूर्व जग गया प्रेम, पड़ा असर दहेज पर,
पहले करो ऑल ड्युज क्लियर,
पापा बोले, तभी बेटा चढ़ेगा घोड़ी पर ।
हॉं-ना, तू-तू मैं-मैं कर के आखिर हो ही गई लड़के की शादी,
एक झटके में भैया लुट गई लड़के की आजादी।
पप्पू और चिंपी क्या हुए, जीवन की तस्वीर ही बिगड़ गई,
शादी के लड्डू भी अब फीकी-फीकी सी लगने लगी।
जानते हैं वे शादी के लड्डू का स्वाद, फिर भी हमसे चखवाते हैं,
लो हो गई शादी आपके भाई की,
अब क्या, आएगी बारी अब आपकी।
फिर आएंगे रिश्ते इस कमाऊ पूत के,
फोटो-कुंडली ले कर कराऍं उन्हें नाश्ते।
फोटो-कुंडली जमी तो आगे(दहेज) की बात होगी,
खूब वसूलेंगे धन, तभी तो समाज में अपनी नाक होगी।
लो डील अब तो हो गया फाइनल,
लड़की से बात करने का पापा ने दिया सिग्नल ।
कहॉं थे अंजान, अब तो पहना दी एक दूजे को अंगूठी,
सभी हैं राजी; फोन, एस.एम.एस. से करेंगे वादे सच्ची-झूठी ।
विवाह पूर्व जग गया प्रेम, पड़ा असर दहेज पर,
पहले करो ऑल ड्युज क्लियर,
पापा बोले, तभी बेटा चढ़ेगा घोड़ी पर ।
हॉं-ना, तू-तू मैं-मैं कर के आखिर हो ही गई लड़के की शादी,
एक झटके में भैया लुट गई लड़के की आजादी।
पप्पू और चिंपी क्या हुए, जीवन की तस्वीर ही बिगड़ गई,
शादी के लड्डू भी अब फीकी-फीकी सी लगने लगी।
जानते हैं वे शादी के लड्डू का स्वाद, फिर भी हमसे चखवाते हैं,
इसीलिए तो भैया दुनिया में अपने ही गड्ढ़े में गिराते हैं।
संघर्ष पर मेरी लिखी एक कविता
संघर्ष
स्वप्न सभी का सर्वश्रेष्ठ पाने का होता है
अगर मिल जाए तो सर्वोत्तम होता है
गर समुचित न मिले तो संताप ना करें
संतोष रखें पर समझौता बिल्कुल न करें
समय की नब्ज थामें, संघर्ष करते रहें
ताकि सुखी जीवन को हासिल करने के
समर में सफल हो सकें।
स्वप्न सभी का सर्वश्रेष्ठ पाने का होता है
अगर मिल जाए तो सर्वोत्तम होता है
गर समुचित न मिले तो संताप ना करें
संतोष रखें पर समझौता बिल्कुल न करें
समय की नब्ज थामें, संघर्ष करते रहें
ताकि सुखी जीवन को हासिल करने के
समर में सफल हो सकें।
Monday, August 11, 2008
प्यार की कसक- एक प्रेम कविता
कसमसाते हुए प्यार की कसक.............
महसूसता है मेरा दिल हर बार
कभी भी जब रहूँ तुमसे दूर,
तेरी यादें, बीते हर लम्हे तड़पाते हैं मुझको।
कभी हँसी तो कभी गर्वीला अहसास भी कराते मुझको।
बातों के बहाने हँसी, खुशी और प्यार ढ़ूंढ़ता हूँ।
मन गुनता है तुमसे मिलने की योजनाऍं।
कसमसाते हुए प्यार की कसक.............
महसूसता है मेरा दिल हर बार
जब कभी तुमसे मिल पाऊँ
मन होता कि तेरे दिल में ही रह जाऊँ।
रिश्ता नहीं ऐसा हमारा कि मिले सान्निध्य की पूरी आजादी।
कौन समझेगा कि क्यों मेरा मन खीझता है, क्यों रोता है।
कौन बूझेगा कि इस तड़प में किस कदर मेरा दिल जलता है।
दुर्लभ क्षणों में मेरा मन तुम्हारे तन से
लिपटकर चिर निद्रा में सोना चाहता है।
ऐ खुदा, इन क्षणों में उसे, कोई शिकवा न रहे मुझसे।
मर जाऊँ इससे पहले कि अलग होना पड़े उससे।
कसमसाते हुए प्यार की कसक.............
महसूसता है मेरा दिल हर बार
हर बार तुम्हारे साथ सुकून की नींद का अपना सपना टूटा पाता हूँ।
पता नहीं क्यों सदा प्यार का आवेग ये सपना तोड़ जाता है।
समझता हूँ, तुम्हारी मुझ में समा जाने की हसरतें।
सच बताओ, क्या नहीं है मुझमें वो ही ख्वाहिशें।
गर बाधाऍं और मजबूरियॉं ना होतीं हमारे दरमियान,
वादा है जितने थे अरमान-मान, पूरा करता उन्हें जरूर।
जुदा होकर भी हमें नहीं है जिंदगी भर रोना।
भले हो जॉंय और के, पर क्यों बुझाऍं प्यार की शमा।
दूर रहकर भी रहना न दिल से कभी दूर।
कभी अलविदा न कहना, चाहे खुदा को जो हो मंजूर।
सच है कि उस अधूरे प्यार की कसक तो ताउम्र रहेगी
पर सच यह भी है कि इस दुनिया में किसी को पूरा जहॉं नहीं मिलता
किसी को पूरी जमीं नहीं मिलती तो किसी को पूरा आसमॉं नहीं मिलता।
महसूसता है मेरा दिल हर बार
कभी भी जब रहूँ तुमसे दूर,
तेरी यादें, बीते हर लम्हे तड़पाते हैं मुझको।
कभी हँसी तो कभी गर्वीला अहसास भी कराते मुझको।
बातों के बहाने हँसी, खुशी और प्यार ढ़ूंढ़ता हूँ।
मन गुनता है तुमसे मिलने की योजनाऍं।
कसमसाते हुए प्यार की कसक.............
महसूसता है मेरा दिल हर बार
जब कभी तुमसे मिल पाऊँ
मन होता कि तेरे दिल में ही रह जाऊँ।
रिश्ता नहीं ऐसा हमारा कि मिले सान्निध्य की पूरी आजादी।
कौन समझेगा कि क्यों मेरा मन खीझता है, क्यों रोता है।
कौन बूझेगा कि इस तड़प में किस कदर मेरा दिल जलता है।
दुर्लभ क्षणों में मेरा मन तुम्हारे तन से
लिपटकर चिर निद्रा में सोना चाहता है।
ऐ खुदा, इन क्षणों में उसे, कोई शिकवा न रहे मुझसे।
मर जाऊँ इससे पहले कि अलग होना पड़े उससे।
कसमसाते हुए प्यार की कसक.............
महसूसता है मेरा दिल हर बार
हर बार तुम्हारे साथ सुकून की नींद का अपना सपना टूटा पाता हूँ।
पता नहीं क्यों सदा प्यार का आवेग ये सपना तोड़ जाता है।
समझता हूँ, तुम्हारी मुझ में समा जाने की हसरतें।
सच बताओ, क्या नहीं है मुझमें वो ही ख्वाहिशें।
गर बाधाऍं और मजबूरियॉं ना होतीं हमारे दरमियान,
वादा है जितने थे अरमान-मान, पूरा करता उन्हें जरूर।
जुदा होकर भी हमें नहीं है जिंदगी भर रोना।
भले हो जॉंय और के, पर क्यों बुझाऍं प्यार की शमा।
दूर रहकर भी रहना न दिल से कभी दूर।
कभी अलविदा न कहना, चाहे खुदा को जो हो मंजूर।
सच है कि उस अधूरे प्यार की कसक तो ताउम्र रहेगी
पर सच यह भी है कि इस दुनिया में किसी को पूरा जहॉं नहीं मिलता
किसी को पूरी जमीं नहीं मिलती तो किसी को पूरा आसमॉं नहीं मिलता।
Thursday, August 7, 2008
आपका अभिनन्दन करता हु
प्यारे दोस्तों
ईश्वर सबको खुश और हँसता रखे। मैंने आज ही ब्लॉग की दुनिया में कदम रखा है। मुझे अलग ही तरह की खुशी हो रही है की मै अपने अभिव्यक्ति को आप सब तक प्रेषित कर सकता हू। आज तो मै बस थोरी सी लिखने की कोशिश ही कर रहा हू क्योकि मै अभी इस कीबोर्ड का अभ्यस्त नही हू। लेकिन आने वाले दिनों में मै इस ब्लॉग के माध्यम से आपलोगो से संवाद करूँगा। तब तक के लिए विदा। आपका- नीरज।
ईश्वर सबको खुश और हँसता रखे। मैंने आज ही ब्लॉग की दुनिया में कदम रखा है। मुझे अलग ही तरह की खुशी हो रही है की मै अपने अभिव्यक्ति को आप सब तक प्रेषित कर सकता हू। आज तो मै बस थोरी सी लिखने की कोशिश ही कर रहा हू क्योकि मै अभी इस कीबोर्ड का अभ्यस्त नही हू। लेकिन आने वाले दिनों में मै इस ब्लॉग के माध्यम से आपलोगो से संवाद करूँगा। तब तक के लिए विदा। आपका- नीरज।
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