Wednesday, September 3, 2008

बीजींग ओलम्पिक में भारतीय खिलाडि़यों की सफलता: कितनी प्रासंगिक

8 अगस्‍त 2008 से बीजींग में प्रारंभ ओलम्पिक खेलों का भव्‍य उद्घाटन देख चुकने के बाद और किसी खास रोमांच की कल्‍पना किसी भारतीय ने शायद ही की होगी। वैसे भी जब देश के कुछ हिस्‍सों में आतंकी घटनाऍं और बाढ़ की स्थिति चल रही हों तथा देशवासियों के राष्‍ट्रीय धर्म क्रिकेट में भी शिकस्‍त मिल रही हो, ऐसे में श्री सुरेश कलमाडी (अध्‍यक्ष, आई.ओ.सी.) की भारतीय ओलम्पिक खिलाडि़यों से किसी चमत्‍कार की आशा न रखने की नेक सलाह बिल्‍कुल जायज ही थी। परन्‍तु 11 अगस्‍त को ही अभिनव बिन्‍द्रा ने 10 मी. एयर राइफल निशानेबाजी में अप्रत्‍याशित रूप से स्‍वर्ण पदक प्राप्‍त कर समूचे देश को चौंका दिया। ओलम्पिक के 108 वर्ष के भारत के इतिहास में पहली बार किसी व्‍यक्तिगत स्‍पर्धा में यह स्‍वर्ण पदक देश को प्राप्‍त हुआ है। 20 अगस्‍त को सुशील कुमार ने 66 किलोग्राम वर्ग कुश्‍ती प्रतियोगिता में कजाखिस्‍तान के लियोनिद स्पिरदोनोव को हरा कर देश के लिए इस ओलम्पिक का पहला कांस्‍य पदक जीता। इसके दो दिन बाद ही विजेन्‍द्र कुमार ने 75 किलोग्राम की पुरूषों की मध्‍यम मुक्‍केबाजी में एक कांस्‍य पदक जीतकर तिरंगे को एक बार फिर शान से फहराने का मौका दिया। कुछ अन्‍य खिलाड़ी जैसे अखिल और जितेंद्र(मुक्‍केबाजी), योगेश्‍वर दत्‍त(कुश्‍ती), सैना नेहवाल(बैडमिंटन) और पेस-भूपति(टेनिस) पदक जीतने से जरा-सा से चूक गए।
बीजींग ओलम्पिक में भारतीय खिलाडि़यों ने अब तक का उत्‍कृष्‍ट प्रदर्शन किया है। ये खिलाड़ी एक नए भारत, जिसमें शहरी-देहाती, धनी-गरीब सभी की महत्‍वाकांक्षाओं का प्रतिनिधित्‍व है, की तस्‍वीर सारी दुनिया को दिखला रहे हैं। लेकिन अन्‍य देशों के मुकाबले हमारे देश का प्रदर्शन काफी फीका रहा है। भारत से काफी छोटे-छोटे देशों जैसे जमैका, पोलैंड, लातविया आदि ने काफी ओलम्पिक मेडल हासिल किए हैं, पड़ोसी देश चीन पदक तालिका में द्वितीय स्‍थान(स्‍वर्ण पदकों में प्रथम स्‍थान) पर था जबकि हम किसी प्रकार 51वें स्‍थान पर ही पहुँच सके। हमारे राष्‍ट्रीय खेल हॉकी की टीम के साथ फुटबॉल और बास्‍केट बॉल की टीमें तो इस ओलम्पिक के लिए क्‍वालीफाई भी नहीं कर सकी थी। बीजींग गई 56 सदस्‍यीय भारतीय टीम ने देश को केवल 3 पदक से संतोष करने को मजबूर कर दिया। अब तो यह राष्ट्रीय बहस का मुद्या बना हुआ है कि एक अरब से अधिक आबादी का देश क्‍या इतने ही पदक जीतने की क्षमता रखता है? आलोचक तो यहॉं तक कहने लगे हैं कि “ओलम्पिक खेलों में भारत की भागीदारी करदाताओं के पैसों की बरबादी से बढ़कर कुछ भी नहीं है।”
आजकल भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता के आगे बाकी खेल दब से गए हैं। परंतु ओलंपिक खेलों में एक समय भारतीय हॉकी का एकछत्र राज रहा था। इस खेल ने केवल ओलंपिक खेलों में ही 11 मेडल (जिनमें 8 स्‍वर्ण) देश को दिलवाए हैं। साथ ही समय-समय पर नॉर्मन गिल्‍बर्ट प्रीथार्ड (भारत के लिए प्रथम मेडल जीतने वाले एंग्‍लो-इंडियन), के.डी. जाधव, लिएंडर पेस, कर्णम मल्‍लेश्‍वरी तथा राज्‍यवर्धन राठौर ने देश के लिए पदक हासिल किए हैं। हाल के वर्षों में विभिन्‍न प्रतियोगिताओं में नारायण कार्तिकेयन ने प्रथम ए-वन जीपी(फॉर्मूला कार रेसिंग) जीता, डोला बनर्जी ने विश्‍व कप तीरंदाजी अपने नाम की, तो विश्‍वनाथन आनंद ने विश्‍व शतरंज चैम्पियनशिप जीत कर दिखाया। टीम खेलों की बात करें तो फुटबॉल में भारतीय खिलाडि़यों ने नेहरू कप और ओ.एन.जी.सी. कप हासिल कर दिखाया तो हॉकी में एशिया कप दक्षिण कोरिया से जीतने में हम सफल रहे। इस प्रकार फिल्‍म चक दे इंडिया का प्रेरक प्रभाव इन खेलों में मिली जीत के रूप में भी झलका था।
बीजींग ओलम्पिक में खिलाडि़यों के उम्‍मीद से बेहतर प्रदर्शन ने देश को भविष्‍य में और अच्‍छे प्रदर्शनों की आशाऍं जगाई हैं। वैसे भी भारत में खासकर गॉंवों में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। हमारे पारंपरिक खेलों जैसे कुश्‍ती, तीरंदाजी आदि में इनकी प्रतिभा को पहचानकर और रणनीतिक तरीके से प्रशिक्षित कर विश्‍व-स्‍तरीय प्रतियोगिताओं के लिए इन्‍हें तैयार किया जा सकता है। पड़ोसी देश चीन में अगर प्रत्‍येक 100 में 30 बच्‍चे एथलीट होते हैं तो इस वजह से कि वहॉं के हर प्रान्‍त में खेल प्रशिक्षण कार्यक्रम बारहों मास चलते रहते हैं। देश में बहुविधीय खेलों के विकास के लिए हर राज्‍य में इन सभी खेलों के लिए एक लीग होना चाहिए जिसके राष्‍ट्रीय नेटवर्क का भी गठन करने की जरूरत है। सभी खेलों के खिलाडि़यों के लिए उत्‍कृष्‍ट कोच, आवश्‍यकतानुसार विदेशी कोच भी, उनके जूनियर स्‍तर से ही लगा देना चाहिए। खेल प्रशासन संभालने के लिए संबंधित खेलों के अनुभवी लोगों को ही नियुक्‍त करना निहायत जरूरी है। पोषण का खिलाड़ी के प्रदर्शन से सीधा संबंध होता है। अत: राष्‍ट्रीय कैंपों में उत्‍कृष्‍ट पोषक पदार्थ की आपूर्ति की जानी बहुत जरूरी है। चोटिल खिलाडि़यों को अनदेखा करने या निकालने के बजाय उनके पुनर्वास की व्‍यवस्‍था की जानी चाहिए ताकि भविष्‍य में उनसे अच्‍छे प्रदर्शन की आशा बनी रहे। कॉरपोरेट समूहों को चाहिए कि वे सिर्फ क्रिकेटरों के पीछे भागने के बजाय अन्‍य खेल के खिलाडि़यों को भी स्‍पांसर किया करें। वे भी इस प्रोत्‍साहन से अच्‍छे प्रदर्शन कर भविष्‍य में उनके उत्‍पादों के लिए अच्‍छे ब्रांड एम्‍बेस्‍डर सिद्ध हो सकते हैं। आई.पी.एल. क्रिकेट की तर्ज पर इन खेलों में भी अभिनव प्रयोग कर व्‍यावसायिकता के प्रवेश के साथ बेहतर प्रदर्शन को प्राप्‍त किया जा सकता है। इसके साथ ही आम लोगों की रूचि भी इन खेलों में जगाई जा सकती है। खेलों में राजनीति दीमक की तरह होती है जिससे खेलों को दूर रखना परमावश्‍यक है।
वर्तमान परिप्रेक्ष्‍य में सरकार, खेल प्रशासकों, भारतीय ओलम्पिक कमिटी प्रमुख और कॉरपोरेट जगत को भारत में खेलों के और विकास के लिए कदम उठाना बहुत जरूरी है नहीं तो इस ओलम्पिक की उपलब्धि केवल इतिहास के पन्‍नों तक ही सिमट कर रह जाएगी। स्‍वर्ण पदक विजेता अभिनव बिन्‍द्रा से एक पत्रकार ने उनके भारत लौटने पर प्रश्‍न किया कि ये अभिनव का गोल्‍ड मेडल है या भारत का? तो उनका जवाब कुछ इस प्रकार था, “यदि देश में खेल क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन लाए गए जो निश्‍चय ही यह भारत का स्‍वर्ण पदक रहेगा परन्‍तु यदि ऐसा न हुआ तो अभिनव की एक पल की यह व्‍यक्तिगत उपलब्धि देश की अनगिनत असफलताओं के बीच दब कर रह जाएगी।”बीजींग ओलम्पिक में भारतीय खिलाडि़यों की सफलता इस मायने में प्रासंगिक है कि इसने पिछले वर्षों से अंतराष्‍ट्रीय खेल प्रतिस्‍पद्धाओं में देश के चक दे इंडिया अभियान को अपने उत्‍कृष्‍ट प्रदर्शनों के बदौलत मजबूती और निरंतरता प्रदान की है। इसके साथ ये सफलता प्रासंगिक इसीलिए भी है क्‍योंकि इसने वर्तमान प्रदर्शन से भी बढ-चढकर प्रदर्शन के लिए देश में समुचित संसाधन तैयार करने की आवश्‍यकता को बड़ी शिद्यत से महसूस कराया है।

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