Tuesday, February 23, 2016

दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद की रोचक तस्‍वीर

हिन्‍दी सिनेमा के त्रिमूर्ति कहे जाने वाले दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद की बड़ी ही मजेदार तस्‍वीर मुझे नेट सर्फिंग करने के दौरान दिखी जिसे साभार अपने ब्‍लॉग पृष्‍ठ पर पोस्‍ट कर रहा हूँ ।

Friday, April 17, 2015

बेटे का जन्‍म दिन का पोस्‍टर

           24 मार्च 2015 को मेरे बेटे अद्वैत (Adwait) का 3rd Birthday हमलोगों ने मनाया ।  उसके जन्‍म-दिन पर खूब धमाल हुआ, मस्‍ती हुई, डॉंस हुआ ।  बड़ा मजा आया । इस अवसर पर उसके नाना-नानी और मामा के रहने से उसका जन्‍म दिन और यादगार बन गया ।  मैंने उसके अब तक के कुछ चुनिंदा तस्‍वीरों को थोड़ी रचनात्‍मकता का प्रयोग कर एक छोटे से खूबसूरत पोस्‍टर का रूप दे दिया ।  लीजिए, पेश है वो स्‍व-रचित पोस्‍टर ।

Monday, March 30, 2015

Wednesday, October 1, 2014

महिला सशक्तिकरण: वास्‍तविकताऍं एवं चुनौतियॉं





महिला सशक्तिकरण: वास्‍तविकताऍं एवं चुनौतियॉं



सशक्तिकरण का आशय होता है- समर्थ होना अर्थात् थोपी गई शक्तिहीनता की दशा से सामर्थ्‍यवान की दिशा में बढ़ना।  महिला के संदर्भ में सशक्तिकरण की जब बात चलती है तो इसका मतलब होता है- महिलाओं के पास भी पुरूषों की तरह ही अपने दिन-प्रतिदिन के सामाजिक, आर्थिक पारिवारिक और राजनीतिक जीवन को संचालित करने के लिए आवश्‍यक शक्ति अथवा क्षमता का होना जोकि उन्‍हें हाशिए से केन्‍द्र में लाने में समर्थ बना सके।
हम यह भली-भॉंति जानते हैं कि महिला ही बच्‍चे की प्रथम शिक्षिका होती है।  उसी के मातृत्‍व के आंगन में बच्‍चे के व्‍यक्त्तिव का विकास होता है।  हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए, कि सशक्‍त महिला, सशक्‍त समाज, सशक्‍त समाज, सशक्‍त देश।  शायद इसीलिए शर शैय्या पर लेटे हुए भीष्‍म पितामह ने अपने अंतिम समय में  पांडवों को राजनीति का पाठ पढ़ाते हूए नसीहत दी थी कि किसी राजा की कुशलता इस तथ्‍य की मोहताज होती है कि उसके राज्‍य में महिलाओं का सम्‍मान कितना होता है।  यही कारण है कि महिला सशक्तिकरण किसी भी सरकार की उपलब्धियों का सार्थक मापदंड माना जाता है।

महिला सशक्तिकरण का लंबा सफर:
      प्राचीन काल में उपनिषदों के अनुसार महिला का परम कर्तव्‍य मात्र उसके पति की सेवा करना होता था।  ऐसी हालत में भारत में कई ऐसे समाज-सुधारक हुए जैसे कि राजा राम मोहन रॉय, ईश्‍वर चंद्र विद्यासागर, ज्‍योतिरॉव फूले आदि जिन्‍होंने महिलाओं की शिक्षा, सती प्रथा के उन्‍मूलन, संपत्ति के अधिकार दिलाने एवं उनके उत्‍थान हेतु क्रांतिकारी कदम उठाए जिनसे वे पहले की अपेक्षा सशक्‍त बन सकीं। हमारे संविधान निर्माताओं ने भी लैंगिक समानता एवं महिला को सशक्‍त बनाने की दिशा में इसके प्रस्‍तावना, मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्‍य, नीति निर्देशक तत्‍व आदि शीर्षकों के अंतर्गत उपयुक्‍त प्रावधान रखे हैं ।  इसके साथ ही दो दर्जन से अधिक कानून महिलाओं के हितों की रक्षा एवं उनको शक्ति प्रदान करने के लिए  बनाए जा चुके हैं।

महिला सशक्तिकरण की वास्‍तविकताऍं: (सुखद वास्‍तविकताऍ)
       वर्तमान समय में महिलाएं वास्‍तव में सशक्‍त बन गई हैं । उन्‍होंने निरंतर विकास करते हुए क्षेत्रों यथा एयरोनॉटिकस, मेडिसीन, अंतरिक्ष, इंजीनियरिंग, कानून, राजनीति, व्‍यापार, खेल आदि सभी में अपने नेतृत्‍व क्षमता साबित की है। आजाद भारत में महिलाओं ने प्रधानमंत्री, राष्‍ट्रपति, मुख्‍यमंत्री, लोकसभा अध्‍यक्ष, राजदूत, राज्‍यपाल, जैसे लोकतांत्रिक और उच्‍च स्‍तर के जिम्‍मेदार एवं सशक्‍त पदों को सुशोभित किया है ।  महिलाओं ने तो ग्राम पंचायत स्‍तर से लेकर संसद के सदस्‍यों के रूप में भी सरकार में अपनी सहभागिता सुनिश्चित की है ।  आज हम अक्‍सर ही अखबारों में यह छपा हुआ देखते हैं कि फलां परीक्षा में लड़कियॉं लड़कों से ज्‍यादा सफल हुई या फिर  दहेज की मांग पर लड़की ने शादी से इनकार कर बारात वापस भिजवा दिया इत्‍यादि।

       सरकार भी महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में कुछ अच्‍छे नीतिगत कदम उठा रही है।  कुछ माह पहले ही संसद में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने से संबंधित बिल पेश हुआ है जोकि महिलाओं को सशक्‍त बनाने के लिए एक ठोस कदम है।  2001 से ही महिलाओं के स्‍वयं सहायता समूहों के समेकित सशक्तिकरण एवं जागरूकता के लिए स्‍वयंसिद्ध योजना चलाई जा रही है। सरकार STEP यानी सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड इंप्‍लाएमेंट प्रोग्राम फॉर वूमन’’ भी चला रही है जिससे महिलाएं अपने कौशल का विकास कर रोजगार प्राप्‍त कर रही हैं।  सरकार के साथ-साथ गैर सरकारी संस्‍थाऍ जैसे जन चेतना मंच, फाउंडेशन टू इजुकेट गर्ल्‍स ग्‍लोबली, द हंगर प्रोजेक्‍ट इत्‍यादि भी महिला सशक्तिकरण के लिए अच्‍छी पहल कर रही हैं।

       वर्ष 2011 की जनगणना के ऑंकड़े भी महिलाओं के हक में अच्‍छे नतीजे दिखाए हैं। सेक्‍स अनुपात बढ़कर 940 हो गया है, महिला शिक्षा दर बढ़कर 74 प्रतिशत हो गया है तथा पुरूष-महिला साक्षरता अंतर प्रतिशत भी घटकर 16.7 प्रतिशत हो गया है।
महिला सशक्तिकरण की वास्‍तविकताऍं: (कड़वा सच)
                ऊपर के विवरण से हमें महिला सशक्तिकरण की सुखद वास्‍तविकता का अहसास हुआ है।  किंतु दुर्भाग्‍यवश हमारे देश और समाज में ऐसे कड़वे सच (वास्‍तविकता) भी मौजूद हैं जिसके बारे में सुनकर हम यह दावे के साथ नहीं कह सकते


कि महिलाओं का संपूर्ण सशकित्‍करण हो चुका है।  जन्‍म पूर्व लिंग परीक्षण करवा कर गर्भ में ही मादा भ्रूण हत्‍या तथा लड़की के जन्‍म लेने की हालत में मार देने की घटना आज भी भले ही कम लेकिन मौजूद है ही।  अगर लड़की जीवीत रही तो भी कुपोषण और लड़के के तुलना में उसके साथ भेदभाव होता ही है।  लड़की को लोग बोझ समझते हैं जिस कारण उसकी शिक्षा पर यथोचित ध्‍यान नहीं दिया जाता है। शिक्षा न मिलने की वजह से आर्थिक रूप से वह आत्‍मनिर्भर नहीं होती है।  दहेज हत्‍या एवं घरेलू हिंसा का भी उन्‍हें शिकार होना पड़ता है।  कार्य क्षेत्र में भी उन्‍हें उन्‍नति के समान अवसर नहीं प्राप्‍त होते हैं कुछ समाज में तो अपनी मर्जी के लड़के से शादी करने की स्थिति में हॉनर किलिंग का भी शिकार होना पड़ता है।  यह एक कड़वी हकीकत है कि आज हजारों महिलाओं(किशोरियों,युवतियों एवं महिलाओं सहित) को यौन प्रताड़ना का दंश झेलना पड़ता है।  औरतें अपने कार्यस्‍थल, गलियों, बस, घर जगह यौन प्रताड़ना झेलती हैं। हाल ही का दिल्‍ली रेप केस इस बात का सबूत है कि औरतें सार्वजनिक स्‍थानों पर भी कितनी असुरक्षित हो गई हैं। 

महिला सशक्तिकरण के राह की चुनौतियॉं:
       महिला सशक्तिकरण की वास्‍तविकताओं को देखकर हम पाते हैं कि हमारे देश में शहरी क्षेत्रों में तो संतोषजनक परिवर्तन हुआ है किंतु देहाती क्षेत्रों में इसकी गति काफी धीमी है।  साथ ही हमें महिलाओं के सशक्‍त बनने की राह की कुछ चुनौतियॉं भी नजर आती हैं जिनका सुनियोजित तरीके से सामना कर 100 प्रतिशत महिला सशक्‍तता समाज में लायी जा सकती है।  भारतीय परिदृश्‍य में ऐसी ही कुछ चुनौतियॉं निम्‍नलिखित हैं:
1. आज महिलाओं के सशक्‍तिकरण एवं उनके प्रति भेदभाव दूर करने के लिए कई सारे कानून बन रहे हैं और कई संशोधन भी हो रहे हैं किंतु ये सारे कानून दंतविहीन सिंद्ध हो जाते हैं क्‍योंकि आधारभूत समस्‍या समाज के नजरिए में छिपा है जो कि महिला के प्रति भेदभाव से पूर्ण है।  तभी तो माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने लालकिला के प्राचीर से अपने संबोधन में कहा कि जब लड़कियों से पूछते हो कि कहॉं जा रही हो क्‍यों जा रहे हो और कब तक आओगे तो ऐसे ही प्रशन अपने लड़कों से भी पूछा करो।  इस प्राकर महिला सशक्‍तिकरण की सबसे बड़ी चुनौती है- समाज का महिलाओं के प्रति नजरिया बदलना।
2. शिक्षा महिलाओं के स्‍वतंत्रता एवं सशक्तिकरण के लिए एक शक्तिशाली हथियार है। कहा जाता है कि “Educate a man and you educate an individual; educate a woman and you educare family. महिलाओं के लिए शिक्षा का बहुत महत्‍व है।  लड़कियों का स्‍कूलों में कम दाखिला एवं आगे चलकर स्‍कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देना भी महिला सशक्तिकरण के समक्ष बड़ी चुनौती है।
3. महिलाओं के लिए आर्थिक आत्‍मनिर्भरता भी एक चुनौती है जिसके बिना उनके सशक्तिकरण की कल्‍पना नहीं की जा सकती है।
4. सरकार के अनेकानेक प्रयासों के फलस्‍वरूप शहरी क्षेत्रों में तो महिला सशक्‍त हुई भी है पर गॉंवों में वे आज भी बदलाव की हवा से अछूती रही है।  वे अभी भी दयनीय हालत में गरीबी अज्ञानता अंधविश्‍वास एवं गुलामी की जिंदगी जीने को अभिशप्‍त हैं।  अत: गॉंवों में भी महिला को सशक्‍त बनाना बड़ी चुनौती है।
5.  आजकल महिला सशक्तिकरण के नाम पर देश में बहुत कुछ हो रहा है और काफी संसाधन भी इसके पीछे निवेश किए जा रहे हैं। किंतु चुनौती यह भी है कि कागजों पर क्‍या हो रहा है और जमीनी तौर पर क्‍या हो रहा है।
6. महिलाओं के सशक्तिकरण के राह में सबसे बड़ी चुनौती महिला स्‍वयं भी है।  ऐसा कहने के पीछे कारण यह है कि घर परिवार में महिला ही महिला की दुश्‍मन होती है।  महिला के सशक्तिकरण के लिए जरूरी यह है कि सभी महिलाऍं एकजुट होकर अपने खिलाफ चल रहे बुराईयों को दूर करने के लिए  उठ खड़े हों।

निष्‍कर्ष:-
महिलाऍं अपनी भूमिकाओं और क्षमताओं के पारंपरिक अवधारणाओं से बाहर आ चुकी हैं। सरकार ने भी कई संवैधानिक एवं वैधानिक प्रावधान उनके सशक्तिकरण के लिए किया है। इन सब के बदौलत महिलाऍं काफी सशक्‍त हुई हैं पर वास्‍तविकता यह भी है कि अभी भी शत-प्रतिशत सशक्तिकरण से महिलाऍं काफी दूर हैं। महिला सशक्तिकरण की राह में अनेक चुनौतियॉं भी हैं जिसका सामना सरकार, समाज और सबसे बढ़कर महिलाओं को करना है। अंत में इस निबंध को स्‍वामी विवेकानंद के प्रसिद्ध कथन से पूर्ण करना उपयुक्‍त होगा कि ‘महिलाओं की हालत सुधारे बिना दुनिया का कल्‍याण संभव नहीं है क्‍योंकि किसी परिंदे का एक डैने से परवाज भरना नामुमकिन है।  
नीलमणि कुमार नीरज

Friday, October 18, 2013

आधुनिक समाज में मीडीया की भूमिका

मानव जाति लाखों वर्ष पहले के शिकारी जीवन से शनै: शनै गुजरते हुए आज 21वीं सदी के आधुनिक समाज में जी रही है।  आज का विश्‍व बेहद व्‍यापक और विस्‍तृत है।  फिर भी यह एक वैश्विक गॉंव अर्थात् ग्‍लोबल विलेज के रूप में प्रतीत होता है।  जिस प्रकार एक गॉंव में छोटी-बड़ी हर बात तत्‍काल जगजाहिर हो जाती है ठीक उसी प्रकार आज विश्‍व के कोने कोने की खबर हमें तुरंत लग जाती है।  जी हॉ़, यह सब मीडीया का ही कमाल है जो हमारे आधुनिक मानव समाज का अब एक अभिन्‍न अंग बन चुका है।  मीडीया की भूमिका हमारे व्‍यक्तिगत जीवन के साथ समाज में अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण हो चली है।
इतिहास साक्षी है कि प्राचीन काल से ही सूचना एवं मनोरंजन के साधन के तौर पर मीडीया का इस्‍तेमाल होता रहा है।  उन दिनों शासक अपनी प्रजा के बीच अपना संदेश, आदेश इत्‍यादि मुनादी करवा कर पहुँचाया करते थे।  सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ लोगों को जागरूक करने में समाचार पत्रों, नुक्‍कड़ नाटकों ने सशक्‍त मीडीया की भूमिका निभाई थी।  भारतीय स्‍वतंत्रता संघर्ष के दौरान समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं ने भी भारतीय जनता को एक सूत्र में पिरोकर आजादी के लिए संघर्ष करने के लिए जागरूक और प्रेरित किया था।
आधुनिक समाज में मीडीया की भूमिका काफी व्‍यापक हो चली है।  इसकी भूमिका को निम्‍न बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है:
1) सूचना प्रदान करने के रूप में- मीडीया हम तक ताजा खबर घटनास्‍थल से सीधे पहुँचाता है।  मीडीया के लोग चाहे दिन हो या रात, चाहे विषम मौसमी परिस्थितयॉं हो, चाहे खतरनाक माहौल हो, हम तक खबर पहुँचाने में अपने जान की भी परवाह नहीं करते हैं। मुंबई आतंकी हमलों, केदारनाथ जलप्रलय आदि के वक्‍त की मीडीया कवरेज इसका उज्‍जवल उदाहरण है। इसके साथ ही वर्तमान घटनाक्रम पर मीडीया के सटीक विश्‍लेषण से समाज में एक नजरिये का निर्माण होता है।
2) जागरूकता फैलाने के रूप में- मीडीया की सबसे महत्‍वपूर्ण भूमिका लोगों को उनके आधारभूत मानवीय अधिकारों के बारे में जागरूक करने के क्षेत्र में है।  यह समाज में चल रही विभिन्‍न सामाजिक, आर्थिक और नैतिक कुरीतियों के खिलाफ प्रचार कर देश का पुनर्निमाण करने में मदद करता है। भ्रष्‍टाचार और अपराध के बारे में मीडीया ही हमें जागरूक करता है।  समाज में मीडीया का यही डर है कि सरकारी तंत्र भी बदनामी के डर से गलत काम करने पर भय खाते है।
     3) मनोरंजन के क्षेत्र में- मीडीया की भूमिका सूचना और जागरूता फैलाने के साथ ही आधुनिक समाज में मनोरंजन प्रदान करने की भी है। प्रिंट के साथ ही ऑडियो-विजुअल और अब तो ई-मीडीया के रूप में भी यह अपने पॉंव पसार चुकी है। हम घर बैठे-बैठे बहुआयामी मनोरंजक सामग्री/कार्यक्रम न केवल देख-सुन-पढ़ सकते हैं साथ ही उन कार्यक्रमों (टैलेंट हंट, रियलिटी शो आदि) का हिस्‍सा भी बन कर नाम और पैसा दोनों अर्जित कर सकते हैं।
     4) विज्ञापन के क्षेत्र में- आधुनिक समाज में जहॉं एक ओर मीडीया का रक्‍त संचार ही विज्ञापन के जरिये होता है वहीं समाज को भी इससे काफी फायदा होता है। मीडीया की इस क्षेत्र में सक्रिय भूमिका से ही कुख्‍यात अपराधी पकड़े जाते हैं, बिछुड़े लोग मिल पाते हैं, लोगों की शादी, जमीन-जायदाद आदि अनेकानेक जरूरतों के लिए आवश्‍यक संपर्क आसानी से प्राप्‍त हो जाते हैं।  कंपनियॉं अपने उत्‍पादों को लोगों के बीच मीडीया के माध्‍यम से ही प्रचारित कर लेती हैं।
    5) संयोजक के रूप में- मीडीया समय-समय पर हमारे देश और समाज को जोड़ने की भूमिका भी निभाता रहा है।  युद्ध के समय देशभक्ति की भावना का संचार करना और प्राकृतिक त्रासदियों के समय देशवासियों द्वारा खुले मन से सहयोग या फिर दिल दहला देने वाली घटनाओं के बाद पूरे देश में एक जुट होकर व्‍यापक जनप्रदर्शन का होना, ये सब मीडीया के वजह से ही संभव हो पाता है।
     मीडीया की उपर्युक्‍त अच्‍छाइयों के साथ इसके कुछ नकारात्‍मक भूमिकाऍं भी हैं जो इसकी विश्‍वसनीयता पर प्रश्‍नचिन्‍ह लगा देते हैं।  घोर व्‍यावसायीकरण के इस युग में मीडीया भी अछूती नहीं रही है।  पब्लिसिटी और टी.आर.पी. की अंधी दौड़ में मीडीया दिनभर में 60 प्रतिशत से अधिक खबरें घिसी पिटी परोसती हैं। अनावश्‍यक नाटकीय अंदाज में खबरों को पेश किया जाता है।  पेड न्‍यूज के रूप में मीडीया अनावश्‍यक रूप से सेलीब्रिटी तथा उसके जीवनशैली या फिर फिल्‍मी कार्यक्रमों को समाचार की जगह पेश करता है वहीं जरूरी ज्‍वलंत खबरें और रिपोर्टिंग देखने से हमारा समाज वंचित रह जाता है।  मीडीया जिस तेजी से किसी खबर को ब्रेकिंग न्‍यूज बना कर पेश करता है उसी फुर्ती से एक-दो दिन में उस खबर की भी खबर लेना भूल जाता है।  अनर्गल वस्‍तुओं के विज्ञापन मीडीया प्रायोजित करता है जिस पर भरोसा कर लोग अपने आप को ठगा हुआ पाते हैं।  आजकल मीडीया नेता विशेष या फिर राजनीतिक दल विशेष के माउथपीस के रूप में भी काम करते हैं जो कि पत्रकारिता के उद्येश्‍य और आदर्शों के बिल्‍कुल खिलाफ है।  आजकल मीडीया का हमारे समाज में इतना हस्‍तक्षेप है कि मान लीजिए कि किसी के घर कोई अनहोनी हो गई हो और उसका परिवार शोक संतप्‍त हो फिर भी रिपोर्टर उससे कुरेद कुरेद कर कुछ न कुछ मीडीया बाइट्स लेने की फिराक में रहेंगे।  उन्‍हें तो मानो मानवीय संवेदनाओं की फिक्र ही नहीं होती।
      नि:संदेह मीडीया आधुनिक समाज का एक अभिन्‍न अंग है।  यह हमारे समाज का वाच डॉग है।  हमारा समाज मीडीया के भूमिका से पूरी तरह प्रभावित है चाहे वो भूमिका सकारात्मक हो या फिर नकारात्‍मक।  इस तथ्‍य को समझते हुए मीडीया को चाहिए कि वो तथ्‍यपरक सूचना और न्‍यायोचित विश्‍लेषण पेश कर समाज के प्रति अपनी जिम्‍मेदारी पूरी करे।  समाज की सेवा करना यही मीडीया का धर्म भी है और कर्म भी।  इससे उनका आदर भी बना रहेगा और दुआऍं भी लगेंगी।
      मैं समझता हूँ कि अगर मीडीया अपनी जिम्‍मेदारी को पहचाने और अपने काम को ईमानदारी से और तरीके से निभाए तो यह राष्‍ट्र और समाज निर्माण के बड़ी ताकत के रूप में उभर कर सामने आएगा जैसा कि अंग्रेजी में एक कहावत है कि A responsible media builds a healthy society”(एक जिम्‍मेदार मीडीया एक स्‍वस्‍थ समाज का निर्माण करता है।)
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Thursday, March 8, 2012

रोचक तस्वीरे

दोस्तों, दिन प्रतिदिन के जीवन में कभी कुछ ऐसा दृश्य आस पास के चीजों को देख कर और जरा अपनी रचनात्मकता का इस्तेमाल कर के हम बना सकते है जो हमें प्रसन्नता का एक  छोटा लम्हा प्रदान कर सकता है. तो ऐसी ही एक कोशिश मैंने भी किया जो आप  तस्वीरों के रूप में देख सकते है. 

दर-असल  हुआ कुछ ऐसा कि किचन में काम करते समय कुछ अतिरिक्त सरसों तेल  कढ़ाही में गिर गया था.  इसे वापस शीशी में रखने के वजह से सरसों तेल की शीशी टेढ़ी होकर कैसी दिख रही है अपने ही साइज़ के तेल की शीशी के सामने, ये आप खुद देख सकते है.  और ये दोनों साथ में कैसे रोमांटिक प्रेमी लग रहे है वो आप इन तस्वीरों के माध्यम से देख सकते है. 



Tuesday, February 21, 2012

लोकप्रिय टाइटल गीत

दोस्तों, एक समय वो था, जब टीवी के नाम पर केवल दूरदर्शन होता था। उस समय में कुछ ऐसे धारावाहिक प्रसारित हुए, जो लोगो के अन्तर्मन में हमेशा हमेशा के लिए बस गए। रामानन्द सागर ने रामायण का निर्माण किया तो बी आर चोपड़ा ने महाभारत का निर्माण किया। नीरजा गुलेरी ने फांतासी धारावाहिक चंद्रकांता का निर्माण किया था। इन धारावाहिको के टाइटल गीत भी लोगो को आज भी सुनने पर उस धारावाहिकों की याद दिलाते है। है आज कोई ऐसा धारावाहिक, जो अपने प्रसारण समय में सड़कों को सूना करवा के लोगो कों टीवी के सामने खीचने की क्षमता रखता हो? तो लीजिये, इस बार आपके लिए इंटरनेट से इन कालजयी धारावाहिकों के टाइटल गीत पेश कर रहा हूँ।

एक और गीत टीवी पर उन दिनों प्रसारित होता था-मिले सुर मेरा तुम्हारा। मुझे याद है कि बचपन के दिनों में हमने इसे पूरा का पूरा कंठस्थ कर लिया था। इस गीत कों भी आपके लिए यहाँ पेश किया है।

उम्मीद करता हूँ कि आप इसे जरूर पसंद करेंगे।

Title Song of Ramanand Sagar's "RAMAYAN"

Title Song of B R Chopra's "MAHABHARAT"

Title Song of Neerja Guleri's "Chandrakanta"

Mile Sur Mera Tumhara Video

                                                                                                            धन्यवाद।