Wednesday, October 1, 2014

महिला सशक्तिकरण: वास्‍तविकताऍं एवं चुनौतियॉं





महिला सशक्तिकरण: वास्‍तविकताऍं एवं चुनौतियॉं



सशक्तिकरण का आशय होता है- समर्थ होना अर्थात् थोपी गई शक्तिहीनता की दशा से सामर्थ्‍यवान की दिशा में बढ़ना।  महिला के संदर्भ में सशक्तिकरण की जब बात चलती है तो इसका मतलब होता है- महिलाओं के पास भी पुरूषों की तरह ही अपने दिन-प्रतिदिन के सामाजिक, आर्थिक पारिवारिक और राजनीतिक जीवन को संचालित करने के लिए आवश्‍यक शक्ति अथवा क्षमता का होना जोकि उन्‍हें हाशिए से केन्‍द्र में लाने में समर्थ बना सके।
हम यह भली-भॉंति जानते हैं कि महिला ही बच्‍चे की प्रथम शिक्षिका होती है।  उसी के मातृत्‍व के आंगन में बच्‍चे के व्‍यक्त्तिव का विकास होता है।  हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए, कि सशक्‍त महिला, सशक्‍त समाज, सशक्‍त समाज, सशक्‍त देश।  शायद इसीलिए शर शैय्या पर लेटे हुए भीष्‍म पितामह ने अपने अंतिम समय में  पांडवों को राजनीति का पाठ पढ़ाते हूए नसीहत दी थी कि किसी राजा की कुशलता इस तथ्‍य की मोहताज होती है कि उसके राज्‍य में महिलाओं का सम्‍मान कितना होता है।  यही कारण है कि महिला सशक्तिकरण किसी भी सरकार की उपलब्धियों का सार्थक मापदंड माना जाता है।

महिला सशक्तिकरण का लंबा सफर:
      प्राचीन काल में उपनिषदों के अनुसार महिला का परम कर्तव्‍य मात्र उसके पति की सेवा करना होता था।  ऐसी हालत में भारत में कई ऐसे समाज-सुधारक हुए जैसे कि राजा राम मोहन रॉय, ईश्‍वर चंद्र विद्यासागर, ज्‍योतिरॉव फूले आदि जिन्‍होंने महिलाओं की शिक्षा, सती प्रथा के उन्‍मूलन, संपत्ति के अधिकार दिलाने एवं उनके उत्‍थान हेतु क्रांतिकारी कदम उठाए जिनसे वे पहले की अपेक्षा सशक्‍त बन सकीं। हमारे संविधान निर्माताओं ने भी लैंगिक समानता एवं महिला को सशक्‍त बनाने की दिशा में इसके प्रस्‍तावना, मौलिक अधिकार, मौलिक कर्तव्‍य, नीति निर्देशक तत्‍व आदि शीर्षकों के अंतर्गत उपयुक्‍त प्रावधान रखे हैं ।  इसके साथ ही दो दर्जन से अधिक कानून महिलाओं के हितों की रक्षा एवं उनको शक्ति प्रदान करने के लिए  बनाए जा चुके हैं।

महिला सशक्तिकरण की वास्‍तविकताऍं: (सुखद वास्‍तविकताऍ)
       वर्तमान समय में महिलाएं वास्‍तव में सशक्‍त बन गई हैं । उन्‍होंने निरंतर विकास करते हुए क्षेत्रों यथा एयरोनॉटिकस, मेडिसीन, अंतरिक्ष, इंजीनियरिंग, कानून, राजनीति, व्‍यापार, खेल आदि सभी में अपने नेतृत्‍व क्षमता साबित की है। आजाद भारत में महिलाओं ने प्रधानमंत्री, राष्‍ट्रपति, मुख्‍यमंत्री, लोकसभा अध्‍यक्ष, राजदूत, राज्‍यपाल, जैसे लोकतांत्रिक और उच्‍च स्‍तर के जिम्‍मेदार एवं सशक्‍त पदों को सुशोभित किया है ।  महिलाओं ने तो ग्राम पंचायत स्‍तर से लेकर संसद के सदस्‍यों के रूप में भी सरकार में अपनी सहभागिता सुनिश्चित की है ।  आज हम अक्‍सर ही अखबारों में यह छपा हुआ देखते हैं कि फलां परीक्षा में लड़कियॉं लड़कों से ज्‍यादा सफल हुई या फिर  दहेज की मांग पर लड़की ने शादी से इनकार कर बारात वापस भिजवा दिया इत्‍यादि।

       सरकार भी महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में कुछ अच्‍छे नीतिगत कदम उठा रही है।  कुछ माह पहले ही संसद में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीट आरक्षित करने से संबंधित बिल पेश हुआ है जोकि महिलाओं को सशक्‍त बनाने के लिए एक ठोस कदम है।  2001 से ही महिलाओं के स्‍वयं सहायता समूहों के समेकित सशक्तिकरण एवं जागरूकता के लिए स्‍वयंसिद्ध योजना चलाई जा रही है। सरकार STEP यानी सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड इंप्‍लाएमेंट प्रोग्राम फॉर वूमन’’ भी चला रही है जिससे महिलाएं अपने कौशल का विकास कर रोजगार प्राप्‍त कर रही हैं।  सरकार के साथ-साथ गैर सरकारी संस्‍थाऍ जैसे जन चेतना मंच, फाउंडेशन टू इजुकेट गर्ल्‍स ग्‍लोबली, द हंगर प्रोजेक्‍ट इत्‍यादि भी महिला सशक्तिकरण के लिए अच्‍छी पहल कर रही हैं।

       वर्ष 2011 की जनगणना के ऑंकड़े भी महिलाओं के हक में अच्‍छे नतीजे दिखाए हैं। सेक्‍स अनुपात बढ़कर 940 हो गया है, महिला शिक्षा दर बढ़कर 74 प्रतिशत हो गया है तथा पुरूष-महिला साक्षरता अंतर प्रतिशत भी घटकर 16.7 प्रतिशत हो गया है।
महिला सशक्तिकरण की वास्‍तविकताऍं: (कड़वा सच)
                ऊपर के विवरण से हमें महिला सशक्तिकरण की सुखद वास्‍तविकता का अहसास हुआ है।  किंतु दुर्भाग्‍यवश हमारे देश और समाज में ऐसे कड़वे सच (वास्‍तविकता) भी मौजूद हैं जिसके बारे में सुनकर हम यह दावे के साथ नहीं कह सकते


कि महिलाओं का संपूर्ण सशकित्‍करण हो चुका है।  जन्‍म पूर्व लिंग परीक्षण करवा कर गर्भ में ही मादा भ्रूण हत्‍या तथा लड़की के जन्‍म लेने की हालत में मार देने की घटना आज भी भले ही कम लेकिन मौजूद है ही।  अगर लड़की जीवीत रही तो भी कुपोषण और लड़के के तुलना में उसके साथ भेदभाव होता ही है।  लड़की को लोग बोझ समझते हैं जिस कारण उसकी शिक्षा पर यथोचित ध्‍यान नहीं दिया जाता है। शिक्षा न मिलने की वजह से आर्थिक रूप से वह आत्‍मनिर्भर नहीं होती है।  दहेज हत्‍या एवं घरेलू हिंसा का भी उन्‍हें शिकार होना पड़ता है।  कार्य क्षेत्र में भी उन्‍हें उन्‍नति के समान अवसर नहीं प्राप्‍त होते हैं कुछ समाज में तो अपनी मर्जी के लड़के से शादी करने की स्थिति में हॉनर किलिंग का भी शिकार होना पड़ता है।  यह एक कड़वी हकीकत है कि आज हजारों महिलाओं(किशोरियों,युवतियों एवं महिलाओं सहित) को यौन प्रताड़ना का दंश झेलना पड़ता है।  औरतें अपने कार्यस्‍थल, गलियों, बस, घर जगह यौन प्रताड़ना झेलती हैं। हाल ही का दिल्‍ली रेप केस इस बात का सबूत है कि औरतें सार्वजनिक स्‍थानों पर भी कितनी असुरक्षित हो गई हैं। 

महिला सशक्तिकरण के राह की चुनौतियॉं:
       महिला सशक्तिकरण की वास्‍तविकताओं को देखकर हम पाते हैं कि हमारे देश में शहरी क्षेत्रों में तो संतोषजनक परिवर्तन हुआ है किंतु देहाती क्षेत्रों में इसकी गति काफी धीमी है।  साथ ही हमें महिलाओं के सशक्‍त बनने की राह की कुछ चुनौतियॉं भी नजर आती हैं जिनका सुनियोजित तरीके से सामना कर 100 प्रतिशत महिला सशक्‍तता समाज में लायी जा सकती है।  भारतीय परिदृश्‍य में ऐसी ही कुछ चुनौतियॉं निम्‍नलिखित हैं:
1. आज महिलाओं के सशक्‍तिकरण एवं उनके प्रति भेदभाव दूर करने के लिए कई सारे कानून बन रहे हैं और कई संशोधन भी हो रहे हैं किंतु ये सारे कानून दंतविहीन सिंद्ध हो जाते हैं क्‍योंकि आधारभूत समस्‍या समाज के नजरिए में छिपा है जो कि महिला के प्रति भेदभाव से पूर्ण है।  तभी तो माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने लालकिला के प्राचीर से अपने संबोधन में कहा कि जब लड़कियों से पूछते हो कि कहॉं जा रही हो क्‍यों जा रहे हो और कब तक आओगे तो ऐसे ही प्रशन अपने लड़कों से भी पूछा करो।  इस प्राकर महिला सशक्‍तिकरण की सबसे बड़ी चुनौती है- समाज का महिलाओं के प्रति नजरिया बदलना।
2. शिक्षा महिलाओं के स्‍वतंत्रता एवं सशक्तिकरण के लिए एक शक्तिशाली हथियार है। कहा जाता है कि “Educate a man and you educate an individual; educate a woman and you educare family. महिलाओं के लिए शिक्षा का बहुत महत्‍व है।  लड़कियों का स्‍कूलों में कम दाखिला एवं आगे चलकर स्‍कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देना भी महिला सशक्तिकरण के समक्ष बड़ी चुनौती है।
3. महिलाओं के लिए आर्थिक आत्‍मनिर्भरता भी एक चुनौती है जिसके बिना उनके सशक्तिकरण की कल्‍पना नहीं की जा सकती है।
4. सरकार के अनेकानेक प्रयासों के फलस्‍वरूप शहरी क्षेत्रों में तो महिला सशक्‍त हुई भी है पर गॉंवों में वे आज भी बदलाव की हवा से अछूती रही है।  वे अभी भी दयनीय हालत में गरीबी अज्ञानता अंधविश्‍वास एवं गुलामी की जिंदगी जीने को अभिशप्‍त हैं।  अत: गॉंवों में भी महिला को सशक्‍त बनाना बड़ी चुनौती है।
5.  आजकल महिला सशक्तिकरण के नाम पर देश में बहुत कुछ हो रहा है और काफी संसाधन भी इसके पीछे निवेश किए जा रहे हैं। किंतु चुनौती यह भी है कि कागजों पर क्‍या हो रहा है और जमीनी तौर पर क्‍या हो रहा है।
6. महिलाओं के सशक्तिकरण के राह में सबसे बड़ी चुनौती महिला स्‍वयं भी है।  ऐसा कहने के पीछे कारण यह है कि घर परिवार में महिला ही महिला की दुश्‍मन होती है।  महिला के सशक्तिकरण के लिए जरूरी यह है कि सभी महिलाऍं एकजुट होकर अपने खिलाफ चल रहे बुराईयों को दूर करने के लिए  उठ खड़े हों।

निष्‍कर्ष:-
महिलाऍं अपनी भूमिकाओं और क्षमताओं के पारंपरिक अवधारणाओं से बाहर आ चुकी हैं। सरकार ने भी कई संवैधानिक एवं वैधानिक प्रावधान उनके सशक्तिकरण के लिए किया है। इन सब के बदौलत महिलाऍं काफी सशक्‍त हुई हैं पर वास्‍तविकता यह भी है कि अभी भी शत-प्रतिशत सशक्तिकरण से महिलाऍं काफी दूर हैं। महिला सशक्तिकरण की राह में अनेक चुनौतियॉं भी हैं जिसका सामना सरकार, समाज और सबसे बढ़कर महिलाओं को करना है। अंत में इस निबंध को स्‍वामी विवेकानंद के प्रसिद्ध कथन से पूर्ण करना उपयुक्‍त होगा कि ‘महिलाओं की हालत सुधारे बिना दुनिया का कल्‍याण संभव नहीं है क्‍योंकि किसी परिंदे का एक डैने से परवाज भरना नामुमकिन है।  
नीलमणि कुमार नीरज