Friday, January 23, 2009

एक प्रेम कविता- मौलिक रचना


उसकी ऑंखें

उसकी ऑंखें.........
कहना चाहती थी मुझसे
वो सब कुछ.........
जो नहीं आ पाती कभी उसकी जुबां पर।
उसके प्रेम का पैमाना
जो सिर्फ मेरे लिए था,
उन्ही ऑंखों से छलकता था।
समर्पण भाव भी था उसकी ऑंखों में
मेरे लिए............
प्यार में लुट जाने की हद तक।

उसकी दो ऑंखें.........
मिलन-सुख और बिछोह-पीड़ा
चुपके से कह जाती।
पर एक हूक सदा उठती उसके दिल में
एक कसक..........
सदा साथ ना रह पाने की
समझती थी वो,
उसकी ऑंखें,
ऑंसू की स्‍याही से मुखड़े के मसि पे
बयॉं भी करती थी।
फिर भी वो करती थी............
मेरा लंबा इंतजार
जो कभी भी नहीं देख पाता था मैं
कुछ ऐसा ही था अपना वो प्यार।